Tuesday, December 21, 2010

कुछ भी लिख लो

"प्यार मोहब्बत लिख लो, देश मे फैले भ्रस्टाचार पे लिख लो, या फिर से कोई नया हंगामा खड़ा करना होतो किसी कि ऐसी तैसी वाला लेख लिख लो, हमे इससे मतलब नही कि तुम क्या लिखोगे, बस हमे लिख कर देदो, हमे बस उसे छपवाना है" सरपंच ने ओमी से कहा| ऐसे साहित्य के कदरदानो के कारण ही पिछ्ले साल भी ओमी का एक लेख शहर के अखबार मे छापा था| लेकिन उस लेख ( इंजिनियर क्यों लिखते है ) के कारण बहुत हंगामा हुआ था| ऐसे लेखक जिनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी, उन्होंने ओमी को बहुत कोसा था| उनमे से कुछ ने ओमी के लिखने पर आजीवन पाबन्दी की भी बात की थी| अब लेखक को लिखने नहीं देंगे, ये पाबन्दी तो नसबंदी से भी बुरी होगी| ऐसे इंजीनियर जिन्होंने अपने इम्तिहानो में भी कुछ नहीं लिखा था, लेखक बनने का सपना देखने लगे थे| कुछ ने तो ब्लॉग भी शुरू कर दिए और कुछ ने सच में एक-दो चीज़े भी लिख ली| लेकिन ये लिखते ही वो लेखक बन गए और उन्होंने ने भी ओमी कोसना शुरू कर दिया| ओमी को समझ में नहीं आरहा था की वो क्या लिखे|
प्यार मोहब्बत की बाते लिखने तो उसने कॉलेज के दिनों से छोड़ दी थी| जब उसकी प्रेम कविता नामक कविता पढने पर लोगो ने ये जानने के लिए उसे परेशान कर दिया था, कि ये कविता किसके लिए लिखी गयी थी| अगर कोई भी लेखक इतना सोच के लिखता तो कभी भी कोई बवाल नहीं होता| ओमी ने बस हिंदी के दो-चार शब्द उठाये जो मन में आया लिख दिया| उसे नहीं पता था की प्रेम कविता लिखने के लिए प्रेम करना भी जरुरी है| ज़माने की ये रीत भी अजीब है, वेद व्यास जी ने महाभारत लिखी उनसे किसी ने नहीं पूछा की आपने लड़ाई कब की थी| लेकिन अगर ओमी के प्यार मोह्हब्ब्त की बात कर दे, जो पीछे पड़ जाते है की "वो कौन थी"
ओमी ने सोचा क्यों देश के इतिहास पर ही कुछ लिख ले| लेकिन जिस देश का इतिहास सरकारों के साथ बदलता है, सरकारों के बदलने के साथ नया घटनाक्रम जुड़ जाता है, कुछ शहीदों को भुला दिया जाता है, तो कुछ वीरो को चोर बताया जाता है, वहाँ न जाने कब सच निकल जाये| अगर सच ऐसा हो जिससे किसी राजनैतिक दल को नुकसान होने का डर होतो गए काम से| नुकसान तो भी बड़ी बात है अगर किसी खाली और हारे हुए नेता ने पढ़ लिया तो बेवजह ही मुददा बनेगा | ओमी का कुछ बिगड़े न बिगड़े, उसका पुतला जरुर जलेगा| इतिहास से निराश होकर ओमी ने सोचा कि देश के भविष्य पर कुछ लिखे| क्यों न वो 2020 में देश कि तस्वीर का खाका रचे| ओमी ने बड़ी मेहनत करके जो लिखा | नेताओ की वर्तमान में जो सोच है, समझ है उससे तो वो 2050 का सपना लग रहा था| अब आज से चालीस साल बाद क्या होगा किसको पड़ी है? यहाँ तो लोगो को समझाओ कि अगर बारिश में पानी बहाया तो गर्मी में पानी नहीं मिलेगा| फिर भी उनके समझ में कुछ नहीं आता ऐसे में उन्हें चालीस साल की प्लानिंग कौन समझाए| ऐसे में तो वर्त्तमान कि घटनाओ पर ही कुछ लिखना बेहतर होगा|
ओमी ने सोचा क्यों न देश में फैले भ्रस्टाचार पर कुछ लिखे| CWG , 2G और न जाने ऐसे कितने इधर उधर के घटनाओ ने ये बता दिया था कि किस कदर अपनी ही थाली में छेड़ करने वाले जिम्मेदार नेता हमारे देश में है| ओमी ने सोचा ये चीज़े तो जगजाहिर है| रोज अखबारों में छपती है| लोग अखबारों में पढ़ते है और अपनी योग्यता के अनुसार नेताओ को गालिया भी देते है| कोई कमीने पर ही रुक जाता है तो कोई खानदान को भी नहीं छोड़ता| हमारे देश में ऐसे नेता अब उन छिछोरे लड़कों के तरह है जो स्कुल जाने वाले लडकियों को छेड़ते है| लडकियों को लगता है ये ज़िन्दगी का हिस्सा है, लड़किया भी अपनी योग्यता अनुसार लडको को गालिया देती है और स्कुल चली जाती है| अब ऐसे माहौल में वो क्या लिखे? अगर ओमी के लिखने से कोई हंगामा हो भी गया तो क्या होगा| नेता इस्तीफा दे देगा| इस्तीफा न हुआ गंगा का स्नान होगया| उनके सारे पाप धुल गए| अब उनसे गबन हुए पैसो के बारे में कोई नहीं पूछेगा| ओमी को आजतक समझ नहीं आया कि लोग इस्तीफा क्यों देते है पैसे क्यों वापस नहीं कर देते| तो ऐसे विषय पर लिखने से क्या फायदा वैसे ही बहुत बुद्धिजीवी है इस विषय पर विचार करने के लिए|
अब ओमी ने सोचा क्यों न बुधिजिवियो के बारे में भी कुछ लिख ले| वैसे ओमी को बुद्धिजीवी परजीवी लगते है, हमेशा दुसरो के द्वारा उत्पन्न कीये गए घटनाक्रमों पर जीने वाले लोग| यह एक ऐसा वर्ग है जो आजतक किसी के समझ में नहीं आया कि कैसे बनता है| इनके सोचने का तरीका बहुत आसान होता है| ये लोग पहले देखते है कि आम जनता क्या सोच रही है| बस अब उनकी सोच को गलत साबित करो, या उनके सोच से विपरीत बाते करो, या उन्हें समझो कि कि उनके सोचने से क्या मुसीबते आएँगी बस बन गए आप बुद्धिजीवी| उदाहरण के लिए जनता ने कहा बदला चाहिए आतंकवादियों को मार दो, इस वर्ग ने जनता को समझाने की कोशिश कि उन्हें जीने का हक़ है उन्हें जीने दो| जनता ने कहा अयोध्या का फैसला अच्छा है सब मिल बाट कर रहेंगे तो इन्होने कहा कि नहीं नहीं ये फैसला अच्छा नहीं है उसमे बहुत complications (उलझने) है| कश्मीर के हसीन वादिया हो या बस्तर का घना जंगल, ये हर जगह पहुच जाते है| सरकार के खिलाफ बोलते बोलते इन्हें पता ही नहीं चलता कि कब इन्होने देश के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है| इन्हें समझाने वाला अगर ताकतवर है ये तो वो रुढ़िवादी, और अगर समझाने वाला गरीब तो वो नासमझ| अब ऐसे में ओमी न तो ताकतवर था न गरीब तो उसे ये लोग क्या कहेंगे इसी डर से उसने सोचा कि इनके बारे में भी क्यों लिखे|
ओमी के अभी तक कुछ नहीं लिखा था| उसके सामने दो सवाल थे क्या लिखे और क्यों लिखे| क्या लिखे इसका कोई महत्व नहीं था, लेकिन क्यों का बड़ा ही महत्व था| सरपंच ने कहा था तो लिखना ही पड़ेगा| लेकिन ओमी की समझ में अभी भी नहीं आया है कि वो क्या लिखे, अगर किसी के पास कोई सलाह होतो ओमी को दे देवे|

यह लेख ब्लोग्शवर एवंम अनुभूति की प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी है

Monday, December 6, 2010

चाल चक्के वाली गाली

 "बाबा आज गाली लेके आना" जब भी मुरली शहर जाता अक्सर उसका पांच साल का बेटा विजय अपने बाबा से जिद किया करता था| आज भी मुरली शहर जारहा था, जैसे ही विजय को पता चला वो रोंने बिगड़ने लगा| "बाबा बोले थे लेके आऊंगा, अभी तक लाके नहीं दिए" विजय अपनी माँ से कह रहा था| उसे लगता था की अगर माँ भी उसका साथ देगी तो शायद तो बाबा गाड़ी लाके दे देंगे| तभी बाहर से आवाज़ आयी "मुरली भैया अगर तैयार होगये होतो चले"| ये आवाज़ ओमी के थी उसे भी शहर जाना था कुछ किताबे लेने, तो उसने सोचा मुरली को भी साथ ले चलेगा अपना साथ फटफटी पे| मुरली ने ओमी को आवाज़ दी "अंदर आ जाओ भैया चाय पिलो फ़िर निकलते है"| अंदर आने पे ओमी ने देखा तो विजय जमीन पर लेटे हुआ था| उसकी शकल पर रोने से आंसुओ के निशान बने हुए थे, बाल बिखरे हुए थे, और रोते रोते बस यही बोल रहा था"बाबा आज गाली लेके आना"| उसकी ये बाते सुन कर ओमी के चेहरे पे मुस्कान आगयी और उसने मुरली से पुछा" अरे भैय्या किस गाली की बात कर रहा है ये विजय| मुरली के बताने पर ओमी को समझ आया कि गाली नहीं गाड़ी चाहिए| ओमी ने विजय से कहा" कौनसी गाड़ी चाहिए, क्यों इतना रो रहे हो"| "चाल चक्के वाली" इतना सुनते ही ओमी हंस पड़ा और विजय से कहा" पहले बोलना तो सीख ले बाद में गाड़ी चलाना| उसके बाद ओमी ने विजय को समझाना चाहा कि वो अभी छोटा है अभी से गाड़ी चला के क्या करेगा| थोडा बड़ा होजये फ़िर वो उसे अपनी फटफटी चलाना सिखायेंगे|  विजय ने अपनी अकड़ में कहा "उसमे में तो दो चक्के होते है मुझे चाल चक्के वाली गाली चाहिए"| उसकी इस बात पर सब हंस पड़े|
मुरली कहने को तो किसान था लेकिन उसकी ज़मीन कहने भर को थी| अपने छोटे से खेत के साथ वो ओमी के खेतो पर भी काम करता था| ओमी अक्सर मुरली को अपने साथ शहर ले जाता था| शहर में राशन का सामान थोडा सस्ता मिलता था और उस दुकान में ओमी के पिताजी का खाता भी था| तो मुरली अक्सर ओमी के साथ जाकर घर के लिए सामान लाता था और बाद में उसकी मजदूरी से वो पैसे काट लिए जाते| इसके साथ वो कुछ अपनी खरीददारी भी कर आता| जो कहने को बस खरीददारी थी|
ओमी और मुरली जैसे ही सड़क पर आये पीछे से भाभी ने आवाज़ दी" ज़रा सुनो" | और घर से बाहर निकल कर आँगन में चली आयी| भाभी ने भैय्या से कहा "अपने लिए कपड़े भी ले लेना"| शायद वो ये बात धीरे से कहना चाहती थी लेकिन शायद उन्होंने धीरे से नहीं कहा या फ़िर ओमी के तेज कानो ने सुन लिया| पीछे से विजय अब भी चिल्ला रहा था "बाबा आज गाली लेके आना"|
शहर पहुंचते ही ओमी ने मुरली को राशन की दुकान पर छोड़ दिया और खुद किताबे लेने चला गया| ओमी के वापस आते तक मुरली अपनी खरीददारी कर लेता फ़िर ओमी वापस आने के बाद उसे अपने खाते में लिखवा देता| जब ओमी वापस आया तो देखा कि मुरली खिलौने वाले से कुछ बात कर रहा था| ओमी ने ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया| उसने मुरली के सामान कि कीमत पूछी और दुकान वाले से कहा कि उनके हिसाब में ही लिख दे | ओमी ने मुरली से पुछा और कही जाना है भैय्या? मुरली ने जैसे कुछ सुना नहीं| ओमी ने फ़िर से पुछा | इस बार मुरली ने जवाब दिया "नहीं चलो वापस चलते है"| मुरली का ये जवाब सुनकर ओमी ने उससे कहा"तुम्हे कुछ कपड़े भी तो लेने थे"
"लेने तो थे भैया, लेकिन नहीं लिया तो क्या होगा वैसे भी मजदूरी करने में कौनसे कपड़े लगते है| विजय बहुत दिनों से जिद कर रहा है तो मैंने उसके लिए खिलौना ले दिया| अब बचे पैसे में इस ज़माने कहा कपड़े मिलते है| विजय की माँ भी कई दिनों से कह रही थी की अपने लिए कपड़े लेलो| लेकिन वो समझ जाएगी, विजय तो बच्चा है वो कहा समझेगा|" जब मुरली ने ओमी से कहा तो ओमी कुछ देर तक शान्त ही रहा| कुछ देर बाद ओमी ने जेब से पैसे निकलते हुए कहा " ये पैसे रख लो, और चलो कपड़े भी ले लेते है" मुरली ने मन करते हुए ओमी से कहा की उसके हिसाब मे वैसे भी बहुत पैसे बाकी है वो और नही ले सकता | ओमी ने हसते हुए मुरली से कहा "तुम्हे कौन दे रहा है मैं तो गाडी के पैसे दे रहा हु और उसका हिसाब मैं विजय से देख लुंगा, तुम्हे इससे कोइ लेना देन नही"
जब मुरली घर पहुंचा तो उसी राह देख रही आँखों मे सवाल थे, क्या इन्होने कपड़े लिए? लेकिन वो कुछ कह पाती उससे पहले ही विजय ने पुछ लिया "गाली लाए" मुरली ने झोले से पहले कपड़े निकाल कर बाजु मे रखे और फिर विजय को उसकी गाडी निकाल कर दी| गाडी देख कर खुशी से विजय उछल पडा और ओमी से बोला "देखा मेली गाली मे चाल चक्के है और अपकी गाली मे दो"

Saturday, December 4, 2010

खौफ

(इस कहानी ने ब्लोग्शवर 6 की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली कहानी होने का ख़िताब जीता| )

चाँद की रौशनी और सड़क के किनारे लगे बल्ब कि आधी अधुरी रौशनी में उसे सड़क के किनारे अजीब सी परछाई दिख रह थी| भरत ने सुना भी था की यहाँ पर सर कटे हुए भूत रहते है शायद ये परछाई इन्ही की हो, इनमे से कोई उसे पकड़ ना ले उसे ये डर सता रहा था| उसके माथे से टपक रहा पसीना, धमनियों में लहू का प्रवाह और ह्रदय की तेज धडकनों से साफ़ था की वो बेहद डरा हुआ था| यह डर उसे आगे बढने से रोकने के लिए काफी था भरत ने कई बार पीछे लौटने की भी सोची लेकिन आज उसके वापस लौटने के कोई गुंजाईश नहीं थी|
और वापस लौट के गया भी तो वो कुत्ते फिर से वही होंगे| भरत अक्सर स्कुल जाते समय बाकी छात्रो का इंतज़ार करता था| गाव के आवारो कुत्ते से उसे इतना डर लगता था कि वो सोच भी नहीं सकता था कि कभी इस रास्ते से वो अकेले गुजरेगा वो भी रात के एक-दो बजे के आस पास| भरत जब घर से निकला तो उसे बिलकुल भी याद नहीं था कि उसे उसी रास्ते से गुजरना होगा| जब भरत मोड़ पर पहुंचा तो उसने देखा की कुत्ते कचरे के ठेर में अपना खाना खोज रहे थे| खाना खौजने के दौरान वो अक्सर एक दुसरे पर गुर्रा रहे थे और कभी एक दुसरे की मुह से खाना भी छीन रहे थे| भरत को लगा जैसे ये सारे उसे भी खा जायेंगे| उसने सोचा कि शायद वो तेज दौड़ कर भाग सकता है ताकी कुत्तो को पता चलने से पहले सी दुर निकल जायेगा या फ़िर चुपचाप धीरे धीरे निकल सकता है| उसने सोचा सड़क के दुसरे किनारे से धीरे धीरे जाना ही बेहतर है| सड़क के दुसरे किनारे से उसने धीरे धीरे आगे बढना शुरू किया| इस तरह चल रहे भरत की नज़र हमेशा कुत्तो पर ही टिकी हुई थी| कुत्तो के बीच हो रही लड़ाइयो को देख कर उसे बहुत डर लग रहा था| इतनी रात को उनके गुर्राने की आवाज़ बड़ी भयावह लग रही थी| कुछ दुर जाते ही एक कुत्ता उसे देख कर गुर्राया और जल्द ही सारे उसकी ओर देख कर भौकने लगे| उसकी टांगे कापनी लगी थी और बिना कुछ सोचे समझे उसने दौड़ना शुरू कर दिया| अपने बहुत पास कुत्ते कि भौकने कि आवाज़ सुन कर वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा| उसे एक पल के लिए ऐसे लगा जैसे ये कुत्ते उसे चीर फाड़ कर खाने वाले है| उनके मुह से टपक रही लार, बड़े बड़े दात, अँधेरे में और भी डरावने लग रहे थे| ज़मीन पर गिरे हुए भरत ने महसुस किया कि उसके हाथ के पास कुछ इटे पड़ी है उसने उन्हें उठा कर कुत्ते कि तरफ दो तीन इटे फेंकी| उसके इस प्रहार से कुत्ते डर कर भाग गए लेकिन भरत लेटा रहा उसे यकींन नहीं होरहा था कि वो चले गए| या शायद उसे समझ में नहीं आरही था कि वो क्या करे| आठ साल के बच्चे के लिए ये बहुत बड़ी घटना थी| उसे अभी और भी दुर जाना था| सांसे स्थिर होने के बाद भरत वहा से उठा और आगे बढ़ने लगा|

अब वो गाव के बाहर खेतो की ओर जाने वाली सड़क पर आगया था| नहर के ऊपर बने पुलिए को पार करना अब उसके लिए अगली चुनौती थी| चाँद की रौशनी और सड़क के किनारे लगे बल्ब कि आधी अधुरी रौशनी में उसे पुलिए के ऊपर अजीब सी परछाई दिख रह थी| भरत ने सुना भी था की यहाँ पर सर कटे हुए भूत रहते है शायद ये परछाई इन्ही की हो, इनमे से कोई उसे पकड़ ना ले उसे ये डर सता रहा था| उसके माथे से टपक रहा पसीना धमनियों में लहू का प्रवाह और ह्रदय की तेज धडकनों से साफ़ था की वो बेहद डरा हुआ था| यह डर उसे आगे बढने से रोकने के लिए काफी था भरत ने कई बार पीछे लौटने की भी सोची लेकिन आज उसके वापस लौटने के कोई गुंजाईश नहीं थी| पुलिए से गुजरना मतलब अपनी मौत को बुलाना था| भरत ने सोचा नीचे उतर कर वो नहर से होके जा सकता है वहा थोडा पानी होगा लेकिन कम से कम भूतो से तो बच जायेगा| रोड से नीचे उतर कर वो नहर पर करने के लिए आगे बढ़ा| इतना कम रौशनी में आगे बढ़ता हुआ भरत किसी चीज़ से टकरा कर नीचे गिर पड़ा| जहा पर वो गिरा था कुछ जानवरों की हड्डिया पड़ी हुई थी| उन हड्डियों को देख कर उसे यकींन होगया कि वहा सचमुच भुत रहते है, और ये हड्डिया उन्होंने ने ही फेंकी है| अब भरत बहुत डरा हुआ था| अगर किसी भुत ने उसे पकड़ लिया तो बाबा तक कैसे जायेगा| उसने अपने बाबा को भी कोसा कि उनका खेत पुलिए के उस पार क्यों है| काश इस पर ही होता तो अब तक वो वहा पहुँच चुका होता| लेकिन अब ये सब सोचने से क्या फायदा? वो नीचे नहर में उतर गया उसे लगा था कि पानी सिर्फ घुटनों तक होगा| लेकिन उसे नहीं पता था कि आज सुबह ही नहर में पानी छोड़ा गया था| नहर में उतरते ही उसने महसुस कि पानी उसके छाती तक आ चुका था| और पानी का बहाव भी थोडा तेज था| उसे लगा कि वो नहर पार कर सकता है लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका शरीर उस बहाव के सामने कुछ नहीं था| थोडा और आगे बढ़ते ही भरत पानी के साथ बह निकला, वो तो पुलिए के नीचे बहुत सारी लकड़िया थी जो भरत उनसे टकरा कर वही रुक गया| लेकिन उसे इस दौरान कुछ चोट भी आयी थी| उसकी किस्मत अच्छी थी जो नहर पुरी नहीं खोली गयी थी| पानी बहाव अगर और तेज होता तो शायद भरत को कोई नहीं बचा पता| लेकिन उसका डर और बड़ गया था क्युकि वो भूतो के और करीब आगया था| उसे डर लग रहा था कोई भुत उसे देख ना ले| साथ में उसे वहा से बाहर भी निकलना था| जैसे तैसे मशक्कत करके वो वहा से निकल पाया| बाहर निकला भरत खुद किसी भुत से काम नहीं लग रहा था| पुरी तरह कीचड़ में सना हुआ| नहर में हुए वाकये ने उसकी जान निकला दी थी| अब उसमे ताकत भी नहीं बची थी कि वो और आगे बढ पाए| तभी उसने ओमी चाचा को जाते देखा| उसने आवाज़ भी लगायी लेकिन ओमी ने जैसे कुछ सुना नहीं| ओमी आगे निकल गया| भरत अब रोने लगा था उसे समझ में नहीं आरहा था कि वो क्या करे| उसे लगा कि अब ओमी ही उसे बचा सकता था| रोता हुआ भरत ओमी की तरफ दौड़ने और आवाज़ देने लगा "ओमी चाचा"|

"ओमी चाचा " अँधेरे में ये आवाज़ सुनकर जब ओमी ने सायकल रोक कर आसपास देखा तो उसे अँधेरे की सिवा कुछ ना दिखा| ओमी लगा जैसे कोई भ्रम हो लेकिन फिर से जब आवाज़ आयी तो ओमी ने धयान दिया कोई बच्चा दौड़ता हुआ पास आरहा है| पास आने पर ओमी ने देखा ये तो भरत था, कीचड़ में सना हुआ, रोता हुआ| उसकी ये हालत देख कर ओमी भी घबरा गया| ओमी कुछ पुछता उससे पहले ही भारत ने कहा "दादी की तबियत ख़राब होगई है बाबा को बताने खेत जारहा था"| ओमी ने भरत को सायकल पर बैठाया और कहा पहले डॉक्टर को बुलाएँगे फिर बाबा को बताएँगे| रास्ते भर भरत ने ओमी को बताया कैसे अचानक दादी की तबियत बिगड़ने पर उसे बाबा को बुलाने के लिए निकलना पड़ा| अम्मा ने उसे भेजा था बाबा को बुलाने के लिए और बड़ी मुश्किलों के बाद यहाँ पहुंचा| उसने ये भी बताया की रास्ते में उसके साथ क्या क्या हुआ| डॉक्टर के घर जाने पर पहले उन लोगो ने भरत को नहलाया और उसकी मरहम पट्टी की | फ़िर डॉक्टर भरत की घर के ओर और भरत ओमी के साथ बाबा को बुलाने खेत गया| जब भरत ओमी और भरत के बाबा घर पहुंचे| तब तक डॉक्टर ने दवाई देकर दादी को सुला दिया था| अम्मा ने भरत को देखते ही गले से लगा लिया| भरत को नहीं पता आज उसने कितना बड़ा काम किया था| उसके जेहन में तो अभी वही डर था| 



यह कहानी ब्लोग्शवर एवंम अनुभूति की प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी है  
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