Sunday, January 23, 2011

वोट का किस्सा

"तुम हमारी मार्क शीट देखोगे और फिर सोचोगे और फिर वोट करोगे ...अगर ऐसा करते ना भैय्या, तो चरणलाल सरपंच नही बनता| तब एक मुर्गी और दारु लेके वोट दिया था अब एक समोसा और चाय लेके कर दो भैय्या" ओमी ने किशन से कहा| गाँव के लोगो को पता नहीं किस कीड़े ने काट लिया था हो उन्होंने गाँव में सबसे पड़े लिखे इन्सान की खोज शुरू करदी| गाँव में सबसे पढ़ा लिखा आदमी ओमी था, लेकिन और भी लोगो ने स्कुल पास किया था उन्हें लगा इस तरह से ओमी को सबसे पढ़ा लिखा कहना भारत के सविंधान के खिलाफ है| इस देश में बहुत सारी चीजे इसके उसके खिलाफ है लेकिन जब तक उनका विरोध करने से अपना मतलब नहीं होता, कोई विरोध नहीं करता| भारत में लोकतंत्र है इसीलिए सब वोटो से ही फैसला होना चाहिए| गाँव वालो ने वोटिंग करवाने की सोची, लोकतंत्र में वोट ही ये बताते है की कौन लायक और कौन नहीं|

ये बात सबको पता थी की ओमी ही सबसे पढ़ा लिखा है लेकिन सब वोट नहीं कर सकते थे| सबके अपने अपने कारण और अकारण के बहाने थे| किशन भी इनमे से एक था| किशन ने आज तक किसी भी छोटे, बड़े, अपने गाँव के या पड़ोस के गाँव के चुनाव में बिना सोचे समझे (बिना कीमत लिए ) वोट नहीं किया था| ये बात ओमी को भी पता थी इसीलिए उसने किशन को चाय नाश्ता करवाया और वोट हासिल करने की कोशिश की | लेकिन ओमी को किशन के सोचने समझाने की शक्ति पर पूरा यकीन था, इसीलिए उसे मालूम था इस चाय नाश्ते के बाद भी उसे शायद किशन का वोट नहीं मिले| किसी उसूल के मानने वाले, धर्म को जानने वाले और फोकट में प्रवचन देने वाले को ये बात अजीब लगेगी, जब ओमी ही सबसे पढ़ा लिखा है तो उसे इस तरह वोट लेने की क्या जरुरत| लेकिन जिस तरह गंगोत्री से समुद्र तक आते आते गंगा मैली होजाती है उसी तरह विचारो से कर्म तक आते आते उसमे भी जातिवाद, क्षेत्रवाद, व्यक्तिगत मामले और ऐसी ही कितनी गंदगी आजाती है| लोगो के मन को तो ज्ञान होता है कि क्या सही और गलत है लेकिन उनके कर्मो में केवल मतलब छुपा होता है| ओमी शायद ये चुनाव जितना भी ना चाहे लेकिन इस चुनाव के हारने के दूरगामी परिणामो को देख कर उसे जीतने की हर संभव कोशिश करनी ही थी|
"भैय्या बात तो तुम्हारी सही है तुम तो शहर के कॉलेज में भी पढ़े हो लेकिन भजन भैय्या हमारे जात के है, और अगर जात के बड़े बुढो ने कह दिया कि भजन को वोट करना है तो हम तो उन्हें ही वोट करेंगे, हमे गाँव में उन्ही के साथ रहना है, तुम ठहरे दूसरी जात के वोट लेके भूल जायोगे " हरिलाल ने ओमी से कहा| ओमी ने हरिलाल को समझाने की कोशिश की "अरे भजन तो लेके देके स्कूल पास हुआ है, वो भी हमारी नक़ल मारके और अब तुम कह रहे हो की उसे वोट करोगे, अरे भैय्या ये कोई लोकसभा, विधानसभा, इसकी सभा, उसकी सभा, मैडम की सभा, धर्म की सभा या गुंडों की सभा का चुनाव नहीं है| जिसको जीतने के बाद हमे कुछ मिल जायेगा, ये तो बस पढ़े लिखे व्यक्ति का चुनाव है, और हम है गाँव के सबसे पढ़े लिखे इंसान, चाहे तो हमारी मार्क शीट देखलो, इसमें तो हमे वोट कर सकते हो|" तर्क और कुतर्क की संभावना वहा होती है जहाँ कोई सुनने को तैयार हो| हरिलाल जैसा गरीब तबका अपने तबके अमीरों के हाथ में होता है| हर चुनाव से पहले इन्हें फरमान मिल जाता है कि क्या करना है और इन लोगो को वही करना होता है| हरिलाल जैसे लोग इस उम्मीद में जीते है कि एक दिन उनके जात के लोगो उनकी मदद करेंगे और इसी उम्मीद में जीवन निकल जाता है| ये जानते हुए भी कि ओमी ही सबसे पढ़ा लिखा है वो उसे वोट नहीं कर सकता था|
ओमी को लग रहा था कि उसे बस उसे शायद उसके घर वालो के ही वोट मिल जाये वही बहुत थे| लेकिन उसमे भी आशंका थी क्युकि ओमी के चाचा का बेटा मनोज भी इस चुनाव में था| मनोज जिसने कॉलेज में एडमिशन तो लिया था लेकिन कभी उसे ख़त्म नहीं किया, लेकिन उसका तर्क था जिस ज़माने में उसने एडमिशन लिया था वो जमाना अलग था, आजकल तो इतने स्कूल कॉलेज है कि कोई भी ऐरा गैर पढ़ सकता है| बात तो मनोज की भी सही थी, देश को आजादी तो १९४७ में मिल थी| आजतक कुछ नेता उसी के कारण चुने जाते है, कुछ परिवार में तो आने वाली नस्ले प्रधानमंत्री पद की दावेदार होती है| अब इतिहास को कोई ऐसे तो उपेक्षा नहीं कर सकता, और मनोज के पास पैसे भी ज्यादा थे लोगो को चाय नाश्ता करवाने के लिए| ओमी अपने एक रिश्तेदार के यहाँ पहुंचा| "तुम्हारे भैय्या तो घर में नहीं है" सुनने के बाद ओमी को एक नया विचार आया क्यों ना वो महिला वोट को लेने की कोशिश करे| ओमी ने भाभी को पुरी बात बतायी, समझायी और खुद को वोट देने के गुहार लगायी| भाभी ने सीधे शब्दों में ओमी को कह दिया "सुबह तुम्हारे भैया कह रहे थे मनोज भैया को ही वोट देना है, अब हम ठहरे औरत जात, आपकी बात तो सही है लेकिन हमे तो अपने पति का ही साथ देना है, सात जनम का नाता है अब ये वोट के लिए तो ना तोड़ेंगे| अपने भैय्या से बात करलो, अगर वो कहेंगे तो हम वोट कर देंगे| "

ओमी को सबसे पढ़े लिखे होने के बावजूद अगर वोट नहीं मिल रहे थे तो फ़िर देश के चुनावो में क्या होता है यह कोई रहस्यमयी या सनसनी चीज़ तो रह नहीं गयी है | उदास हताश ओमी सायकल को घसीट कर ले जारहा था| आदमी भी अजीब होता है जब खुश होता है तो उबड़ खाबड़ रास्तो पर भी सायकल चला लेता है और जब उदास तो पक्के रास्तो पर उसे पैदल घसीट कर लेजाता है| "अरे क्या हुआ ओमी, फ़िर किसी बदमाश ने हवा निकल दी क्या" रामचरण (अपराधियों की प्रतियोगिता) ने ओमी इस तरह पैदल चलते देख कर पुछा| ओमी ने बड़ा ही असहाय सा जवाब दिया "अब तो हमारे मस्तिष्क की हवा निकल गयी है सायकल की क्या पूछ रहे हो" रामचरण ने ओमी से विस्तार में पुछा कि क्या हुआ है| ओमी के सारी बाते सुनने के बाद रामचरण को बुरा लगा, गाँव में सबसे पढ़ा लिखा होने के बावजूद उसे वोट नहीं मिल रहा| अब रामचरण ने ठान ली कि चाहे जो हो पुरे वोट ओमी को ही मिलेंगे| रामचरण ने ओमी से कहा " तुम चिंता ना करो और सायकल चला के घर जाओ, कल गाँव के सारे वोट तुम्हे ही मिलेंगे, यहाँ तक कि भजन और मनोज भी तुम्हे वोट करेंगे, हम सब देख लेंगे" ओमी को ये बात सुनने में अच्छी तो लगी लेकिन वो नहीं चाहता था कि उसके कारण रामचरण फ़िर से गुंडागर्दी करे| उसने रामचरण को कहा कि उसके लिए उन्हें किसी को डराने धमकाने कि जरुरत नहीं है, जो होना हो जायेगा| लेकिन इस पर रामचरण ने कहा"मैं तो सबसे विनती ही करूँगा लेकिन मेरा इतिहास अगर किसी को डरा दे, तो उसमे ना तो मेरी गलती है ना तुम्हारी "
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