Thursday, October 7, 2010

कंचे

घुटने को ज़मीन पर टेक कर अर्जुन ने जमीन की उस हिस्से को फुंक मार कर साफ़ किया जहा वो अंगूठा रखने रखने वाला था| अर्जुन के अंगूठे को जमीन पर रखते ही बाकी सब लड़के थोडा और झुक गए और सबकी नज़र अर्जुन के हाथ पर टिक गयी | ऊँगली पर कंचा था, अंगूठे में जोर और आँखें  नरेश के कंचे पर थी| नरेश ने मन ही मन भगवान से प्राथना करनी शुरू कर दी| जैसे ही उसके दाहिने हाथ ने बाये हाथ की ऊँगली को छोड़ा एक आवाज़ आयी| ये आवाज़ कंचो के टकराने की थी| आवाज़ से साफ़ था की अर्जुन का निशाना बिलकुल सही जगह लगा है| कंचो के टकराने की यह आवाज़ जल्द ही बच्चो के शोर में बदल गयी| अर्जुन जीत गया! अर्जुन जीत गया!

आज तक अर्जुन से कोई जीता है जो नरेश जीत पाता! गाँव के सारे बच्चो को पता था की अर्जुन को हराना मुश्किल है लेकिन फिर भी कोई ना कोई उसे चुनौती दे ही देता था| फिर यह बच्चे स्कूल से भाग कर कंचे खेलते थे| आज भी ऐसा ही हुआ| अर्जुन खुश होकर अपने कंचे गिन रहा था और इस काम में उसकी मदद कर रहा था उसका दोस्त भरत| दोनों जीतने की ख़ुशी में मस्ती कर रहे थे की तभी किसी के जोर से आवाज़ दी "तुम दोनों फिर से भाग गए, आज अर्जुन तेरी खैर नहीं" सुनते ही अर्जुन बोला "बाबा!!"| बाबा ने कंचे खेलते देख लिया अब तो अर्जुन की शामत थी| डर के मरे अर्जुन से भागा भी नहीं गया| बंशी ने आते ही अर्जुन के गाल पर एक तमाचा दिया| "दिन भर कंचे, बस कंचे ही खेलेगा, स्कूल से भागेगा, और भागेगा" इसका साथ ही एक और तमाचा और पड़ा| इतना देखने के बाद भरत को लगा की शायद आज बंशी काका अर्जुन के साथ उसी भी पीटेंगे और उसने रोना शुरू कर दिया| उसे रोता देख बंशी ने कहा "तु क्यों रोता है चल भाग यहाँ से". ये सुनने के बाद भरत वहा से नौ दो ग्यारह होगया| बंशी ने अर्जुन का हाथ को खीच कर पकड़ा और खीच कर उसे घर लेजाने लगे| अर्जुन तो बच्चा था बंशी के तेज कदमो की बराबरी करने के लिए उसे दौड़ना पड रहा था| दौड़ने की वजह से अर्जुन के जेब से कुछ कंचे गिर गये| अर्जुन ने हाथ छुड़ा कर वो कंचे उठाने पीछे लौटा| बंशी के लिए कंचो का कोई महत्व नहीं था लेकिन अर्जुन के लिए वो उसकी जीत उसकी इज्जत शायद उसका सब कुछ था| ये देख कर बंशी आग बबुला होगया| "आज तेरे एक भी कंचे नहीं छोडूंगा " बंशी ने ये कहते हुए अर्जुन के हाथ से सारे कंचे छीन लिए| अर्जुन के जेब से भी कंचे निकाल लिए| अर्जुन मार खाने के बाद इतना नहीं रोया होगा जितना अब वो रोने लगा "हमारे कंचे हमे देदो!हमारे कंचे हमे देदो!" लेकिन बंशी ने उसकी बातो को अनसुना करके कंचो को सड़क के साथ साथ चल रही नहर में फेक दिया| 
"अरे क्या हुआ बंशी भैया" ओमी ने देखा कि बंशी अर्जुन को डांट डपटते ले जारहे थे| बंशी ने ओमी को बताया "क्या बताये ओमी भैय्या इसे तो समझा समझा के थक गए है, इतनी मन्नत करते तो मिट्टी की मुर्ति भी मान जाती लेकिन यह कि सुनता ही नहीं| आज फिर स्कूल से भाग कर कंचे खेल रहा था| आपसे तो कुछ छिपा नहीं है पेट काट कर पढ़ा रहे है इसे और यह कि सिवाय कंचो के कुछ देखता ही नहीं| सपने देख रहे है कि कॉलेज पढ़ाएंगे लेकिन भैया ये तो स्कूल खत्म करले वही बहुत लग रहा है " 
माँ अर्जुन को समझा रही थी| स्कूल से भाग कर कंचे खेलने क्यों गया? तुझे तो पता है ना बाबा को ये अच्छा नहीं लगता| "लेकिन कंचे नहर में क्यों फेके, सड़क में फेकना था ना मैं बाद में उठा लेता" जब अर्जुन ने यह कहा तो उसकी माँ को समझ नहीं आया कि यह उसकी बेशर्मी है या भोलापन| लेकिन माँ तो काम ही होता है बाप की बात बेटे को और बेटे की बात बाप को समझाना| माँ ने अर्जुन से कहा कि अभी परीक्षा तक कंचे मत खेल| "उसके बाद भी कहा से खेलेंगे बाबा ने तो पुरे कंचे नहर में फेक दिए| तुम्हे पता है वहा भुत रहते है अब पता नहीं मेरे कंचो के साथ भुत क्या करेंगे" अर्जुन ने माँ से कहा| माँ ने जैसे तैसे अर्जुन को समझा लिया कि वो परीक्षा तक कंचे नहीं खेलेगा और उसके बाद वो बाबा से कहेंगी उसके लिए नए कंचे लाने को|

अब स्कूल से भाग कर तो क्या स्कूल के बाद भी अर्जुन कंचे नहीं खेलता था| सारे लड़के कंचे खेलते और अर्जुन उन्हें देखता| अर्जुन को ना खेलते देख भरत ने भी खेलना छोड़ दिया| जब अर्जुन ने भरत से पूछा कि वो क्यों नहीं खेलता| तो उसने बहाना बना कर कहा" मेरी माँ ने भी मना किया है"| लडको ने अर्जुन को चिडाया भी लेकिन उसने माँ को वचन जो दिया था| भरत का मन तो बहुत किया लेकिन वो अर्जुन का दोस्त जो था| दोनों कि ज़िन्दगी में बस कंचे देखने कि चीज़ रह गयी थी|

अर्जुन और भरत लडको को खेलता देखा रहे थे| भरत से अर्जुन से कहा"आजकल ये नरेश बहुत उचकता है परीक्षा होने के बाद इसे बुरी तरह से हराना अर्जुन"| अर्जुन ने उसकी हा में हा मिलते हुआ कहा बस यार थोड़े दिन और रह गए है....." अर्जुन अपनी बात पुरी  कर पता इससे पहले उसके गाल पर एक भारी हाथ ने तमाचा जड़ दिया| इस अचानक तमाचे से अर्जुन हिल गया| यह तमाचा बंशी का था| "तुझे कितने बार समझाया है लेकिन तु फिर स्कूल से भागा" ....बंशी अपनी बात पुरी कर पता इससे पहले ही भरत ने डरते हुए कहा "काका हम तो बस देख रहे थे और हम भागे नहीं आज मास्टरजी ने जल्दी छुट्टी दे दी "| दोस्त को बेवजह मार खता देख शायद भरत में जोश आ गया कि वो बंशी काका के सामने जुबान खोले| "उस दिन के बाद से हम दोनों ने स्कूल से भागना छोड़ दिया और कंचे खेलना भी| हम तो परीक्षा के बाद ही खेलेंगे| अर्जुन ने काकी को वचन दिया है"

उसके बाद ना अर्जुन ने बाबा से बात की ना बाबा ने अर्जुन से बात करने कि कोशिश| सोने से पहले अर्जुन ने बाबा और माँ को कुछ खुसुर पुसुर करते सुना| सुबह भी कुछ खास नहीं थी| माँ से भी ज्यादा बात नहीं की और रोज की तरह स्कूल चला गया| स्कूल में भरत ने उसने कुछ कंचे दिए और कहा "काका मिले थे रस्ते में, वही दुकान से खरीद कर दिए है हम दोनों के लिए और कहा है स्कूल के बाद ही खेलना" 

4 comments:

  1. बहुत उम्दा .... आपकी भाषा की सरलता हिं आपकी कहानियो की जान है |
    well done :)

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  2. धन्यवाद sweta जी

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  3. Good one just ending was not upto ur mark.. :D

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  4. Thanks Ravish ...will try better next time :)

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