Sunday, March 13, 2011

भविष्यवाणी

यह कहानी ब्लोग्शवर एवं अनुभूति की प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी है

"यह है गुरु का पर्वत और यह सूर्य और यह शनि और यह रहा आपका बुध ...." मनोज के हाथ को पकड़ कर वरुण उसे हस्तरेखा के कुछ बाते समझा रहा था| सुनने में तो यह हमारे अंतरिक्ष का वर्णन लग रहा था सारे ग्रह उपग्रह और ना जाने क्या क्या| वरुण कोई बहुत बड़ा ज्ञाता नहीं था लेकिन चाय के साथ कुछ ना कुछ तो बात करनी ही थी| ओमी वरुण के बाते सुन सुन अपने हाथ में भी उन पर्वतो को पहचानने की कोशिश कर रहा था| वरुण ने जब ये देखा तो ओमी को चिड़ाता हुआ बोला "ओमी क्या देख रहे हो आओ हम तुम्हारा हाथ देख लेते है", ओमी ने वरुण को कहा कि उसे इन सब पर भरोसा नहीं है| वैसे भरोसा करने या ना करने के लिए उस चीज़ के बारे में पता होना चाहिए, लेकिन ओमी पढ़ा लिखा था और पढ़े लिखे लोग अगर ये कहे कि उन्हें इन सब पर भरोसा है तो उनकी शान के खिलाफ हो जाता है| मनोज ओमी और वरुण कॉलेज के साथी थे, कहने को तो वरुण भी उतना ही पढ़ा लिखा था लेकिन उसे ज्योतिष के बारे में जाने की इच्छा थी तो उसने कुछ सीखने की कोशिश की, लेकिन बेचारा कभी पर्वतो से आगे सीख ही नहीं पाया| मनोज को हमेशा अपना भविष्य जानने की उत्सुकता रहती थी चाहे वो अख़बार में छपने वाले घिसे पिटे राशिफल हो या सड़क के किनारे का तोता| मनोज ने वरुण से कहा "ये सब आधी अधुरी बाते छोड़ो कुछ साफ़ साफ़ बताओ जैसे नौकरी कब मिलेगी, शादी कब होगी, बीवी कैसी होगी .. " मनोज को बीच में टोकते हुए ओमी बोला "तेरी बीवी कैसी होगी ये बताने के लिए ज्योतिष नहीं चाहिए ये तो तेरे बाप से पूछना पड़ेगा की तुझे कहा बांधेगा और कितने में बांधेगा" सब ये सुनते ही हँसने लगे| मनोज को भविष्य जानने की इतनी उत्सुकता थी कि वो वरुण का पीछा ही नहीं छोड़ रहा था| वरुण को इतना ज्योतिष तो आता भी नहीं था, उसे अब निकलना था, और भी काम थे, आखिर में वरुण ने मनोज को एक जाने माने ज्योतिषी का पता दे दिया और उन तक पहुँचने की पुरी जानकारी| वरुण तो निकल भागा लेकिन ओमी के पास भागने का कोई चारा ही नहीं था| उसे मनोज ने अपने साथ चलने को राज़ी कर लिया| अब कल सुबह दोनों जाने वाले थे अपना भविष्य जानने| ओमी को भी लग रहा उसे भी शायद अपनी किताब का भविष्य पता चल जाये|
मनोज की सनक ने अगली सुबह दोनों को जल्दी उठा दिया| ओमी भी चाहता था की वहाँ जाके अपनी किताब के बारे में जाने लेकिन वो मनोज ऐसा दिखा रहा था जैसे वो बस उसके लिए जाने को तैयार हुआ है| ये मनुष्य का स्वभाव है, अपना काम होते हुए भी वो ये दिखाना नहीं भूलता कि उसे दुसरो की कितनी चिंता है| दोनों सायकल से शहर पहुंचे और सायकल एक परिचित के यहाँ रख कर बस स्टैंड| सुबह सुबह जब दोनों बस स्टैंड पहुंचे तो उन्हें यकीन नहीं हुआ कि ये वही भीड़ से भरी जगह जहा दिन में पाँव रखनी के लिए भी जगह नहीं मिलती| चाय के दुकानों पर दुध खौल रहा था, समोसे के मसाले तैयार किये जारहे थे, दिन भर दुत्कारे जाने वाले कुत्ते मजे से घूम रहे थे| ऐसा अक्सर होता है सुबह जल्दी उठने पर यकीन नहीं होता कि ये वही जगह है| दोनों इतने सुबह इसीलिए आये थे क्युकि उन्हें सिलापुर जाने की पहली बस पकड़नी ताकी वो लोग शाम तक वापस गाँव आ सके| बस में बैठने पर उन्हें जगह तो आसानी से मिल गयी| लेकिन ये जगह अगले आधे घंटे के लिए थी, धीरे धीरे बस में भीड़ लगने लगी थी, और दो लोगो कि जगह पर चार लोग बैठे थे| लोग और लोगो के सामानों से ठसाठस भरी बस में ओमी और मनोज को हो रही तकलीफ उनके चेहरों से साफ़ जाहिर हो रही थी| ओमी ने मनोज से कहा "अभी भी वक़्त है वापस चलते है इसी तरह तीन घंटे और उसके बाद दूसरी बस पता नहीं उसमे कितनी भीड़ होगी" मनोज ने इस बात कोई जवाब नहीं दिया| दुसरे शब्दों में उसका जवाब था चुप चाप बैठे रह|
तीन घंटो के बाद जब बस सिलापुर पहुंची तो ओमी और मनोज दोनों पस्त हो चुके थे| सुबह से कुछ खाया भी नहीं था| वहा पूछने पर पता चला कि कठिपुर जाने वाली बस थोड़े देर में आती होगी| और ये कठिपुर जाने वाली एक मात्र बस थी| दोनों ने सोचा कि बस आते तक कुछ खाले| ओमी जैसे ही समोसे लेकर आया, मनोज ने उसे अख़बार दिखा कर बोला "देख इसमें लिखा है मेरे आज सारे कार्य सफल होंगे, तु चिंता ना कर आज सब अच्छा ही होगा" तभी उन्होंने देखा कि उनकी बस आगई| ओमी ने समोसे हाथ में पकड़ रखे थे और बस में चढ़ने लगा| भीडभाड में समोसे गिर गए और दोनों अब अगले दो घंटे तक भूखे ही रहने वाले थे| इस बार उन्हें बैठने कि जगह भी नहीं मिली थी| दोनों खड़े खड़े जारहे थे| ओमी को शांत देख कर मनोज ने उसे समझाया कि वो लोग कठिपुर में कुछ खा लेंगे और कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है| दोनों ने दो दो समोसे खोये थे, ये बलिदान बहुत बड़ा था| इसके बदले आज उन्हें कुछ बड़ी चीज़ तो मिलनी ही चाहिए थी|
कठिपुर पहुचने पर पहले दोनों ने बैठने के जगह खोजी और अपने पैरो को आराम दिया| वहा से ज्योतिष के घर पैदल जाना था| वरुण के बताने के हिसाब से आधे घंटे में दोनों पहुच जाते| लेकिन वरुण ने दोनों इस हालत के बारे में सोच कर आधे घंटे कहा था या बिना सोचे ये उन दोनों को नहीं पता था| ओमी कुछ कहता उससे पहले मनोज ने उसे चलने को कहा, और खाने के बात पर बोला "खाने के चक्कर में अगर लेट होगये तो वहा भीड़ बढ़ जाएगी" ओमी को भी ये बात सही लगी जहा इतना सब सहा वहा थोड़ी सी सहुलियत के लिए क्यों वक़्त बर्बाद करे और शाम तक वापस भी जाना था| इसीलिए मनोज और ओमी दोनों चाल पड़े| मनोज और ओमी दोनों लोगो से रास्ता पूछ पूछ कर जा रहे थे, सड़क पर हर खाने की चीज़ को देख कर रुकने का मान तो होता लेकिन दोनों पहुचने में देर नहीं करना चाहते थे| करीब एक घंटे के बाद उन्हें उस ज्योतिषी का घर दिख ही गया|
घर से थोड़ी दुर पहले ही मनोज ने ओमी से पुछा, तुम्हे क्या लगता है क्या सच में ये ज्योतिषी हमे हमारा भविष्य बता देगा? मनोज के इस सवाल पर ओमी को भी संदेह था| लेकिन वहा दिख रही लोगो की भीड़ और वरुण के बताने के हिसाब से ये तो तय था कि ये महाराज सच में बड़े ज्योतिष थे और भविष्य ठीक ठीक बता देने की प्रबल संभावना थी| उसने मनोज को यकीन दिलाया कि ये व्यक्ति जरुर उसे भविष्य बता देगा| लेकिन ये यकीन आते ही मनोज के चेहरे के भाव बदल गए और उसने ओमी से वापस चलने को कहा| ओमी को पहले कुछ समझ में नहीं आया उसने मनोज को समझाने की कोशिश की जब इतने दुर आये हो तो कुछ जान लेते है| लेकिन मनोज अड़ गया कि उसे वापस जाना है और वो भी बिना कारण बताये| मनोज के हड़बड़ाहट देख कर ओमी को लगा शायद मनोज डर गया है भविष्य में होने वाली किसी बुरी बात के पता लगने से| उसने मनोज को समझाया कि वो ज्योतिषी से केवल अच्छी चीज़े ही पूछेंगे उसे डरने कि जरुरत नहीं है| मनोज इस पर मुस्कुरा बैठा और उसने ओमी से कहा "ओमी मैं डर के वापस नहीं जारहा, भविष्य के अनिश्चितता ही मुझे हमेशा अपना भविष्य जानने के लिए उकसाते रहती है, ये अनिश्चितता ही हमे कुछ करने के लिए प्रेरित भी करती है, और कही ना कही ये अनिश्चितता ही जीवन को कुछ मायने देती है अगर आज हमे अपना भविष्य पता चल गया तो इस अनिश्चितता का आनंद चला जायेगा, मैं इस आनंद को खोना नहीं चाहता और इसीलिए वापस जाना चाहता हु"

6 comments:

  1. ओमी भैय्या ..मैं समझता हूँ कि कहानी लिखना बहूत ही मुस्किल काम होता है पर आप इसमे माहिर हो और आप बहूत अच्छा लिखते हो. द्रश्यों का बहूत ही अच्छा वर्णन था |

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  2. bahut khoob! aap ne kahani ko bahut khoobsurti se likha hai and end mein jo message diya hai wo bhi bahut acha hai :) good luck for the contest!


    sarah

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  3. Omi Bhaiyya: It took me a lot effort to read through so much hindi, used as we are not to it!

    But having read, I liked the ending because of course it is the uncertainity of the future which provides us with the choices to do or not to do... If we already knew exactly what was going to happen; we would be restricted by the choices that we would have to make and life would become dull.

    Well done. ATB!

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  4. lo ji....khoda pahad aur chooha bhi nahi nikla!!!!
    aap yakeen nai karenge magar hum isey padne ke liye kareeb kareeb aadha ghanta laga diye aur wo bhi sab kuch zor zor se pad rahi thi.
    aisa lag raha tha jaise main wapas school main hoo aur teacher ne readin karwaya!
    lekin haa kahani bohot achi thi. mujhe wakayi bohot pasand aayi :-)))))

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  5. Thanks Rajneesh Sweta Sarah Aashish and Sadiya

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