Friday, September 17, 2010

दादाजी और जलेबी


"छोटू क्या खा रहा है" दादाजी ने अपने 7 साल के पोते से पूछा | पोते ने भरे हुए मुह से जवाब दिया " चोक्लेत".  दादाजी ने उसे बहलाते हुआ कहा की कौनसी पिपरमेंट है? छोटू गुस्सा होगया और बोला "पिपल्मेंत नहीं  चोक्लेत खाला हु"| दादाजी खीज गए| बूढ़े होने के बाद अगर इन्सान के हा में हा ना मिलायी जाये तो वो खीज जाते है| खीजने के बाद शुरू होता है बडबडाने का लम्बा सिलसिला| दादाजी भी बडबडाने लगे "पिपरमेंट नहीं चोकलेट, अभी ठीक से जबान भी निकली और लगा मुझे समझाने| आजकल के माँ बाप भी पता नहीं बच्चो को क्या क्या खिलाते है| बच्चे के लिए पैसा है, जोरू के लिए पैसा है लेकिन बाप के लिए कुछ नहीं| बस अपनी जवानी में जो खा लिया तो खा लिया इनके भरोसे तो भर पेट खाना मिल जाये वही बहुत है| अरे ओमी कहा जारहे हो"| 

अगर कोई बुज़ुर्ग रोक ले तो समझो लो अब उनके जीवन का सार, बदलते समाज और अपने भविष्य की बहुत सारे बाते सुनने को मिलेगी| वैसे काशी दादा ने हमे बहुत दिनों से बुलाया भी नहीं था, हमने भी सोचा की चलो अब यही सही| हमारी अपेक्षा के अनुसार काशी दादा ने हमसे पूछा कहा जा रहे हो ओमी बेटा| हमने हमारे अनुभव से सिखा है अगर कोई बुजुर्ग कहा जा रहे हो से बात शुरू करे तो समझलो बुढाऊ ने लम्बा प्लान बनाया है| यह सवाल पूछ के बस वो यह देखना चाहते है की सामने वाला कितनी जल्दी में है और कितना समय दे पायेगा| हमने काशी दादा को बताया की हम बाज़ार जारहे है| बाज़ार के बात सुनते ही जैसे उनको कुछ याद आगया और हमसे बोले "ओमी बेटा हमारा 1 काम कर दोगे, बाज़ार जारहे हो तो हमारे लिए जलेबी ला दोगे " हमे ये सौदा बुरा नहीं लगा यहाँ बैठ कर बेकार की बाते सुनते उससे अच्छा तो यही है| उम्र के साथ इन्सान का आत्म सम्मान और बड़ जाता है| दादा को भी यही हुआ उन्होंने अपने तकिये की नीचे रखे 10 रूपए निकाल कर हमे दिए| काशी दादा काम वाम तो कुछ करते थे नहीं थे और जितनी शिकायत उन्हें अपने बेटे से थी लगता तो नहीं की उसने पैसे दिए होंगे| हमे अजीब लगा की चाहे 10 रूपए ही सही लेकिन बुढ्ढे के पास पैसे आये कहा से? लेकिन सवाल ये नहीं था की उनके पास पैसे कहा से आये सवाल ये था की अब हम उन्हें कैसे समझाए की अब इतने पैसे में जलेबी नहीं मिलती| उन्हें समझाने की जगह हमने उनसे कहा "क्या बात कर रहे दादा आपसे भला जलेबी के पैसे लेंगे अरे बचपन में आपने इतना खिलाया है अब हम खिला देंगे जलेबी ही तो है कोई सोना चाँदी नहीं"| इतना सुनते ही काशी दादा ने आशीर्वादो के बरसात शुरू करदी| फिर हमारे माता पिता का गुणगान किया वाह कैसा सपुत पैदा किया है| लेकिन हमारे माता पिता को हम कभी सपुत लगे नहीं| फिर अपने कपूत को गालिया दी|  हम भी चल दिए बाज़ार की ओर|

रस्ते से जाते हुए शंकर को बुला कर काशी दादा ने पूछा "तुने ओमी को देखा क्या "| शंकर ने बताया की कुछ देर पहले दिखे थे शहर की तरफ जारहे थे शायद| ये सुन कर काशी दादा को यकीन आगया की ओमी गया तो जलेबी लेने ही है| बुढ्ढा मन एक बात से मान जाये ये तो मुश्किल है| उन्होंने छोटू से कहा की ओमी अभी तक आया नहीं| छोटू शायद बात सुनी ही नहीं या सुन कर अनसुनी करदी| वो तो अपने खेल में मस्त था| ये देख कर दादा और चिढ गए और बडबडाने लगे| "बिलकुल अपने बाप पर गया है| कोई कुछ पूछ रहा है ये नहीं की उसे कुछ बता दे|" अब दादा को कौन समझाए की छोटू इतना बड़ा नहीं हुआ है की उनकी बातो का जवाब दे| शायद दादा को ये बात मालूम थी लेकिन उन्हें तो बस बहाना चहिये बडबडाने का| उनका बडबडाना जारी रहा "हमे लगता था की पुरे गाव में कोई अगर अच्छा लड़का है तो ओमी है| लेकिन लगता है ओमी भी बाकीयो की तरह ही है| शायद बाकियो से बड़ कर| और होगा भी क्यों नहीं पढ़ा लिखा है अब बाकीयो से तो ज्यादा चालक होगा ही| गया है जलेबी लेने या पता भी नहीं गया भी या नहीं| हमसे झुट तो नहीं बोलेगा लेकिन अगर गया है तो आता क्यों नहीं "| बुडापा इन्सान के सब्र को बहुत काम कर देता है| काशी दादा से भी सब्र नहीं होरहा था| तभी छोटू ने उन्हें बताया ओमी काका आगये|

जब काशी दादा ने जलेबी की पुडिया खोली तब हमने देखा 1 पेपर जलेबी के रस से भीग गया था| आज हमे समझ में आया की जलेबी वाले क्यों जलेबी को 2 पेपरों में क्यों बांध कर देते है| उनकी आँखों में बच्चो जैसा लालच और उतावलापन था| अपनी कापती उंगलियों से जब उन्होंने जलेबी उठाई तो लगा जैसे उनके बरसो से अधूरी इच्छा किसी ने पुरी करदी है| अब तो दादा पुरी जलेबी युही साफ़ कर देंगे| लेकिन हमारी सोच के विपरीत उन्होंने वो जलेबी छोटू को बुला कर दी, और कहने लगे येले जलेबी खा और ये तेरी चोकलेट से भी मीठी है| तभी काशी दादा के बेटे किशोर भैया भी आगये| किशोर बेटा आ जलेबी खाले ये सुनते ही हमे अचरज हुआ की जिस बेटे को कितनी गालिया दी अब उसे ही जलेबी खिला रहे है| एक हम है जिसने जलेबी लाकर दी उसकी कोई कीमत ही नहीं| शायद बाप का मन ऐसा ही होता है जो बस बच्चो को गाली तो देता है लेकिन उनसे अपना मोह नहीं छोड़ पता| अब हमारी पारी आयी जब किशोर भैया के सामने उन्होंने हमारी जी भर के तारीफ की और हमे भी जलेबी दी| रस्ते से जाते हुए बबलू को भी बुला लिया| हमे लगा जैसे पुरे गाव को न्योता देंगे आज| हमे समझ में आया काशी दादा की ख़ुशी जलेबी खाने से कम और बाटने से ज्यादा थी| वो फिरसे अपने जवानी के दिनों में पहुच गए थे जब उनके बाज़ार से आते ही आसपास के सारे बच्चे जमा होजाते और काशी दादा उन सबको जलेबी खिलाते|  अब काशी दादा ने खुद जलेबी खायी उनकी आँखों की चमक से उनके जीभ पर घुलती जलेबी का जैसे मानो सीधा प्रसारण हो रहा था| उन्हें जलेबी बहुत अच्छी लगी इसका सबूत तो उनके चेहरे की मुस्कान थी| जब  हमने काशी दादा से कहा की अब हम जाते है| दादा हमे एक और जलेबी दी और बहुत सारा आशीर्वाद दिया, हमारे माता पिता की गुणगान किया वाह कैसा सपुत पैदा किया है| अपने बेटे को लताड़ा की उनके रहते गाव के दुसरे लड़के उन्हें जलेबी लाकर खिला रहे है| हमने जब किशोर भैया को देखा तो उनकी आखों में एक ख़ुशी थी अपने पिता को जलेबी खाते देखने की| फिर वहा से चल दिए अपने माता पिता को बताने की उन्होंने कैसा सपुत पैदा किया है| 

हम घर आकर बैठे ही थे की किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी  "अरे भैया काशी दादा चल बसे "

Wednesday, September 8, 2010

ओमी भैय्या की किताब

"ये तो हिंदी में लिखा है पहले क्यों नहीं बताया, मेरा पूरा समय बर्बाद कर दिया" फर्जी प्रकाशन के मालिक रसिकबिहारी ने हमसे बिगड़ कर कहा| बड़ी मुश्किलों के बाद उन्होंने मिलने का समय दिया था| अब ये मौका तो हम जाने देने वाले नहीं थे| हमने कहा "हिंदी भी तो भाषा है क्या हुआ जो हिंदी में है ". रसिकबिहारी चिढ गए और बोले "लिखो जिस भाषा में लिखना है लिखो लेकिन बिकेगी तो इंग्लिश की किताब ही और हमारे प्रकाशन से तो बिकने वाली ही किताब छपेगी". हमे समझ आ गया की अब जो आगे होगा वो हमारे लिए बहुत पीड़ादायक होगा| इसके बाद हमने उन्हें भारत की जनसख्या, जनसख्या में पढ़े लिखे लोग,, पढ़े लिखे लोगो में हिंदी जानने वाले, हिंदी जानने वालो में किताब खरीदने वाले के बारे कुछ मनगढ़त आकडे दिए| आकड़ो की सबसे अच्छी बात यही है उन्हें कोई भी कभी भी किसी भी उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकता है| हमारे द्वारा दिए गए आकड़ो से रसिकबिहारी मान गए| अरे मानते भी कैसे नहीं, आकड़ो से सरकारे मान जाती है, विपक्ष मान जाता है| आकड़ो की सच्चाई जानने का वक़्त होता किसके पास है?  
इसके बाद रसिकबिहारी ने हमसे पूछा की हम कहा से पढ़े है| हमने बताया स्कूल गाव से पढ़े और कॉलेज पास के शहर से| वो हँसते हुए बोले की अरे ओमी हमारे पूछने का मतलब है कौनसी संस्था से पढाई की है जैसे IIT या IIM या और कोई और बड़ी शिक्षण संस्था| ये तो बड़ी ही अजीब बात करदी IIM क्या चीज़ है ये तो हमारे पुरे गाव को नहीं पता और IIT के बारे में सिर्फ हमे पता है क्योंकी बड़के भैय्या ने वहा से MTech किया है| तो ऐसे किसी भी संस्था से पढने का सवाल ही नहीं उठता| रसिकबिहारी फिर से भड़क गए| हम पर गुस्सा करते हुए बोले की एक तो हिंदी में लिखते हो ऊपर से ना हीं IIT से हो ना IIM से तुम्हारी किताब खरीदेगा कौन? उन्होंने हमे और ज्ञान दिया की आजकल किताबे घर सजाने की चीज़ बन गयी है| जैसे लोग गुलदस्ता, टीवी, सोफा लेते है वैसे ही किताबे| घर में बड़ी बड़ी मोटी मोटी कथित बड़े लेखको की इंग्लिश किताबे रखना अब status symbol है| लेकिन IIT से तो इंजीनियर बनते है वो भला लेखक क्यों बनेंगे? हमारा यह विचार हमारे मस्तिस्क में ही रह गया, हमे पता था यही विचार आगे जाके भड़ास बनेगा, भड़ास निकालने  के लिए पूरा गाव पड़ा है लेकिन अभी हमे अपनी किताब की चिंता थी| 
इसके बाद हमने अपनी रणनीति बदल दी| "कॉलेज में पढने वाले छात्र तो कुछ पढ़ते होंगे ना " हमने रसिकबिहारी को समझाते हुए कहा| रसिकबिहारी बोले "हा पढ़ते है ना लेकिन वो भी इंग्लिश की किताबे पढ़ते है| GRE का नाम सुना है कभी, इसी के लिए वो किताबे पढ़ते है इधर GRE निकली उधार किताबे | और जो हिंदी की किताबे पढ़ते है वैसी किताबे तो तुम लिखोगे नहीं ". ये सुनते हमारे सम्मान को धक्का लगा| हमने उनसे पूछा आखिर ऐसा क्या पढ़ते है यह लोग? रसिक बिहारी ने हमे एक किताब दी और बोले पढो| किताब का नाम था "उस रात में जब घर पंहुचा तो वो फिर मेरे बिस्तर पर थी"| नाम और मुख पृष्ट पार छपी तस्वीरों को देख कर हम लज्ज्जित होगये| अपनी बची हुई इज्जत को उठा कर हम वहा से चल दिए|
फर्जी प्रकाशन के ऑफिस से अपने गाव तक सफ़र हमने बस लोगो को कोसते हुआ पूरा किया पहले प्रकाशन को, फिर इंग्लिश को, फिर IIT , IIM , GRE को, फिर सरकार पाकिस्तान चाइना अमेरिका को, और भी बहुतो को कोसा | अब  भगवान और किस्मत को कोसने की पारी  आ गयी थी 

Monday, September 6, 2010

इंजिनियर क्यों लिखते है?

"बचपन में जब खेलना कुदना चाहिए, तब ये लोग सुबह जल्दी उठकर, रातो को जग जग कर, मर मर के पड़ते है फिर बड़े होके इंजीनियर बनने के बाद, काम करने की जगह लिखना शुरू कर देते है| हमे यह नहीं समझ आता जब लिखना ही था तो कला क्षेत्र की पढाई करनी था ना तकनिकी की क्यों की?" हम अपनी भड़ास निकाल रहे थे| भड़ास किस बात की है ये बाद में बताएँगे (क्युकि अभी तक लिखा नहीं है)

बड़के भैया( हमारे मौसी के बड़े लड़के, बंगलौर में इंजीनियर है किसी विदेशी कम्पनी में) हमे समझाते हुए बोले ओमी ऐसे बिगड़ने से क्या होगा तुम कोशिश करते रहो कुछ ना कुछ होजायेगा| अरे क्या खाक होगा इंजीनियर को अपना काम करना चाहिए और लेखक को अपना क्या जरुरत है ब्लॉग, किताब या कविताये लिखने की| अब आप ही बताओ क्या आपने कॉलेज में मोटी मोटी किताबे कविताये या उपन्यास लिखने के लिए की थी| हमे भड़कता देखे बड़के भैय्या बोले तुम्हे गुस्सा नहीं सहानुभूति होनी चाहिए|

इंजीनियर बचपन से पड़ता है इस उम्मीद में एक दिन काम करेगा लेकिन जब काम करने का समय आता है तब और भी बहुत कुछ आ जाता है अब जैसे कोई सरकारी कार्यालय में है बड़ी बड़ी फाइल है लेकिन लिखता कौन है? क्लर्क वो भी पैसे लेके और अगर इंजीनियर उस फाइल में कुछ फेरबदल करना चाहे भी तो कर नहीं सकता| किसी इंजीनियर को ना लिखने की कीमत मिल जाती है और किसी को धमकी| अब बेचारा इंजीनियर लिखे कहा? जो कोई सोचे कार्यालय से बाहर निकाल कर हो रहे कामो को ही देख ले| तो पहले तो छोटे, मोटे, पतले या दुबले बाबु उन्हें बाहर निकलने नहीं देते, जो बाहर निकाल आये भी तो गुंडे, बदमाश, नेता, ठेकेदार उन्हें काम की जगह पर पहुचने नहीं देते और जो एक्का दुक्का पहुच भी जाते है तो बेचारे वापस नहीं आते| अब इन सबसे तो अच्छा ही है की वो कुछ लिख ही ले| भ्रस्टाचार के खिलाफ लिख के(चाहे उसे कोई पड़े ना पड़े) इन्सान की भड़ास तो काम हो जी जाती है इसीलिए यह इंजीनियर भी लिख लेते है

बड़के भैय्या ठीक है सरकारी तो लिख ले लेकिन आपके जैसे बड़ी बड़ी विदेशी कम्पनी में काम करने वाले इंजीनियर अरे वो तो ऑफिस में बैठके, ऑफिस के कंप्यूटर से ब्लॉग लिखते रहते है
उन्हें क्या जरुरत है लिखने की?

अरे ओमी उन्हें तो सबसे ज्यादा जरुरत है कम्पनी ज्वाइन करते ही वो बेचारे सोचते है की कोडिंग करेंगे, लेकिन कोडिंग के नाम पर उन्हें मिलते है वही पुराने कोड जिसे वो बस थोडा बहुत बदल देते है| कुछ तो बस अपना नाम चस्पा कर देते है कोड में बिना किसी फेरबदल के| अपना समय निकलने के लिए उनमे से कुछ CAT की परीक्षा दे देके समय बिता देते है, कुछ CAT की coaching देने वाली संस्थाओ के चक्कर लगाकर समय बिताते है, और कुछ के लिए तो यह विचार की CAT देना है या नहीं ही बहुत होता है समय बिताने के लिए| कुछ खुशनसीब जो मेहनत और किस्मत से कोड को छूने वाले होते है, उन्हें उनके ऑफिस के होने छोटी, मोटी, अर्जेंट, weekly, monthly , long या short मीटिंग काम करने नहीं देती| तुम नहीं समझोगे ओमी भैया सब मन कसोट के रह जाते है| इसीलिए यह बेचारे अपने उस कंप्यूटर पर जिसपर काम करना चहिये था, ब्लॉग लिखना शुरू कर देते है

बड़के भैय्या की बाते सुन कर हमे अपने ही शत्रु से सहानुभूति होने लगी| अब वक़्त और हालत ने हमे लेखक इंजीनियर के मन की उद्वेलना से परिचित करा दिया| हमारी भड़ास भी कम होगई थी, और मन भी हल्का होगया| अपने शत्रु की दयनीय अवस्था देख कर खुश होना मनुष्य का स्वाभाव है|

(भड़ास किस बात की थी यह बाद में बतायंगे अभी तो सारे इंजीनियरों के लिए दुआ मांगिये की उन्हें ज्यादा और अच्छा काम मिले)

Sunday, September 5, 2010

गेहू का गोदाम

हमारे गाव में एक गेहू का गोदाम है| गोदाम की जमीन तो बहुत  बड़ी है लेकिन नजाने गोदाम उतना बड़ा नहीं बनाया गया| गोदाम इतना छोटा क्यों बना इसके पीछे कई कहानिया और कई सच है| क्या कहानी और क्या सच यह तो इश्वर ही जनता है| लोग कहते थे की सरकारी कार्यालयों में तो गोदाम भी बहुत बड़ा है लेकिन गाव आते आते छोटा हो गया | जो छोटा मोटा गोदाम गाव पंहुचा उसे गाव के जिम्मेदार लोगो ने और छोटा कर दिया| लेकिन गोदाम के छोटा होने से गाव के बच्चे बड़े खुश थे, क्युकि बाकी बची जगह क्रिकेट के लिए बड़ी ही उपयोगी थी| 
गोदाम के आसपास की जगह गेहू तौलने के काम आती थी| ऐसा हम नहीं गोदाम वाले कहते थे हमने तो बस वहा क्रिकेट खेलते ही देखा था| जो ज्यादा पूछा तो कह देते "गेहू उगाते कितना हो जो गोदाम बड़ा चाहिए"| बात तो यह भी ठीक थी क्युकि अच्छी फसल के लिए बारिश समय से चाहिए, बारिश हुई तो अच्छे बीज चहिये, बीज मिले तो खाद चाहिए और खाद मिल गयी तो भगवान का आशीर्वाद चहिये| लेकिन इस साल हमारे गाव के किसानो ने नजाने क्या करामत की, गेहू की फसल बहुत अच्छी हुई| लेकिन अब फसल अच्छी हुई तो सरकार के पास पैसे नहीं थे खरीदने के लिए| ज्यादा फसल उगा के भी उतने ही पैसे क्युकि अब गेहू का मूल्य जो कम होगया| इस मेहनत का फायदा क्या? हमारे गाव के किसानो के पास सरकार पार दबाव बनाने का भी समय नहीं था| जितनी देर से फसल बिकेगी उतना ही ज्यादा ब्याज देना होगा| किसानो ने गेहू बेचा, पैसे लिए, कर्ज चुकाए, कपडे लिए, बच्चो को के लिए बड़े बड़े सपने देखे फिर उनके जरूरते पूरी करने की कोशिश की| यहाँ तक पहुचते पहुचते कुछ के पैसे खत्म होगये और जिनके बचे उन्होंने थोड़ी और जरुरत पूरी कर दी अपने बच्चो की| 
जितना गेहू गोदाम में आया उतना रखवा दिया और बाकी गोदाम के बाहर सड़क पार| हमने जाकर जब कहा सड़क पे क्यों रखा है तो बोले अभी गाड़ी आएगी उठा के लेजायेगी| हमे सब पता था गोदाम में काम करने वालो को क्रिकेट खेलने की जगह चाहिए थी इसीलिए उन्होंने सड़क में फेकवा दिया|  हमने जो ज्यादा बोला तो हमे समझाया गया| "ओमी भैय्या गेहू का क्या हर साल होता है और नहीं भी होता है तो इतना बड़ा देश है कही ना तो होगा| जो मानलो जो देश में ना भी हुआ तो वर्ल्ड बैंक से पैसा उधार लेके अमेरिका से खरीद लेंगे| अरे अमेरिका तो हमारे देश के लिए अलग से गेहू उगाता है जो हम सस्ते दामो में खरीद सके| कभी कभी तो गेहू के साथ कुछ अन्य पौधे जैसे गाजरघास भी फ्री में मिल जाते है  और फिर भी तुम्हे चिंता लगी पड़ी है गेहू की| अब क्रिकेट को देखो 1983 में वर्ल्ड कप जीते थे तबसे जीते भी नहीं,और कोई देश हमे कप जीत के तो देगा नहीं और सिर्फ 11 खिलाडी में ही कितना जोर लगयोगे| अगर गाव के बच्चे क्रिकेट खेलेंगे तो यह भी खिलाडी बनेंगे और हमारा देश वर्ल्ड कप जीतेगा " अब तुम्ही सोचो गेहू ज्यादा महत्वपूर्ण है या क्रिकेट|
अब गाव के जिम्मेदार लोग क्रिकेट के चिंता कर रहे थे और हमे चिंता थी कि सड़क पड़ा गेहू ख़राब ना होजाये| शायद एक बड़े संत को यह बात पहले से पता थी इसीलिए तो कह गए "प्रभु इतना दीजिये जामे कुटुंब समाये ..". क्युकि प्रभु ने अगर ज्यादा दिया भी तो, उसे तो सड़क पर ही ख़राब होना है|

Friday, September 3, 2010

अपराधियों की प्रतियोगिता

कलयुग है और कलयुग में कुछ भी हो सकता है| ऐसे ही एक कलयुगी घटना घटी हमारे पड़ोस के गाव में घटी| पड़ोस के गाव में रखी गयी अपराधियों की प्रतियोगिता| सुना था अपराध करना बुरा है, पाप है लेकिन अब तो अपराधियों को सामाजिक स्वीकार्यता मिल चुकी है| अपराधी ही हमारे विधायक और सांसद है| पुलिस वाले भी खुद को पीछे कैसे रखे वो अभी अपराधी बनने लगे है| अब ऐसे  दौर में ये प्रतियोगिता इतनी अजीब बात भी नहीं थी| खैर इस अपराध की काली छाया हमारे गाव में अभी उतनी बड़ी नहीं हुई थी| पुरे गाव में एक ही गुंडा था| कलयुग का प्रताप समझो की यह गुंडा भी हमारे गाव के सम्मानित व्यक्ति मास्टरजी का बेटा था| गाव वालो ने तय किया की मास्टरजी के बेटे रामचरण को ही हमारे गाव के तरफ से इस प्रतियोगिता में भेजा जाये|

पुरे गाव के सामने सर उठा कर चलने वाले मास्टरजी इतने सारे लोगो को आता देखा घबरा गए| उन्हें अंदाज़ा होगया की फिर से रामचरण ने कुछ गड़बड़ की है| इससे पहले की हम कुछ कहे रामचरण अंदर से बाहर निकला| उसे देख कर हम दर गए और एक  कदम पीछे हटे| भागवान बुरा करे पीछे वालो को जो पीछे हटने की जगह अपने जगह पर खड़े रहे और उल्टा हमे आगे धकेल दिया|  हम अपनी पुरानी जगह से आगे गए और रामचरन के और पास|  इतने पास की वोह आसानी से हमारा तेटूवा दबा सकता था| रामचरण में हमे देख कर बोला "काहे बे ओमी ये क्या नौटंकी लाये हो साले उल्टा लटका के इतना मारेंगे की तुम्हारी tight jeans भी ढीली होके पजामा और कुरता दोनों बन जाएगी "| ये शायद पहली बार था जब मास्टरजी अपने बेटे की गुंडागर्दी देख रहे थे| जिस आदमी ने ना जाने कितनो बच्चो के भविष्य बनाये आज वो अपने ही बेटे का बर्बाद वर्तमान देख रहे थे| हमने हिम्मत करके कहा "पड़ोस के गाव में अपराधियों की प्रतियोगिता होरही है और हमारे गाव के सबसे बड़े गुंडे लुच्चे और कमीने तो रामचरण ही है| गाव वाले सोच रहे है की आप ही इस प्रतियोगिता में जाये और गाव को जीत दिलाये "| अपने बेटे का चरित्र चित्रण सुन कर मास्टरजी रोते हुए घर के अंदर चले गए| बाप के आंसू और बेइज्जती ने तो अच्छो अच्छो को बदल दिया है| रामचरण किस खेत की मुली थे| पहली बार रामचरण ने देखा उसके कर्मो के कारन उसके पिताजी में क्या बीत रही थी| "पगला गए हो ओमी भैय्या" इस बार रामचरन क आवाज़ में अपनी ताकत का अभिमान नहीं था| रामचरण रुवासा होके बोले "कैसी बात कर रहे हो, ऐसी प्रतियोगिता में भेज रहे हो जिसमे गाव जीत के बदनाम होजायेगा| आप सभी गाव वालो से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगते है| ये समझ लो की लड़कपन की गलती होगई, आज के बाद यह सब बंद| अरे इस प्रतियोगिता में क्या भाग लेना और जितना| खेल कूद में जीतो, पड़ाई लिखाई में जीतो "

अब प्रतियोगिता कोई भी गाव जीते, हमारे गाव को तो इनाम पहले ही मिल गया था| रामचरण सुधर गए अब और क्या चहिये था| लेकिन रामचरण ने हमारे लिए मुसीबत करदी| इस प्रतियोगिता में जीतने के बाद होने वाली बदनामी के कारन गाव वालो ने सोचा की इसी प्रतियोगिता में ऐसे इन्सान को भेजे जो हार जाये| "पुरे गाव में ओमी भैय्या से सीधा और सच्चा और कोई नहीं है" रामचरण हमारे कंधे पार हाथ रख बोले| उल्टा लटकाने से लेकर हमारे चरित्र चित्रण का ये सफ़र बड़ा ही अजीब था| अब वक़्त और हालत ने हमे ही प्रतियोगी बना दिया अब गाव की इज्जत हमारे हाथ में थी| बस अपना रथ (सायकल) लेकर निकल पड़े अपना कर्म करने के लिए|

Thursday, September 2, 2010

किस्सा tight jeans का

3 -4 महिनो पहले खरीदी हुइ jeans अब tight होने लगी थी|  हम ठहरे गाँव के गवार, tight jeans से परेशान हो गए थे| सोचा इस समस्या का समाधान शायद पंच के पास हो | पंच ने कहा हमे तो कुछ नहीं पता सरपंच से पूछते है | फिर क्या था सरपंच ने विधायक से पूछा, विधायक ने सांसद से पूछा, सांसद ने प्रधानमंत्री पूछा और प्रधान मंत्री ने मदमजी से पूछा | मदमजी ने अपने खासम खासो से पूछा | एक आम आदमी की छोटी सी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है यह देख कर हमे दुःख हुआ | लेकिन हम कर भी क्या सकते थे | हमे अपनी  tight jeans की फिकर हो रही थी | पंच ने हमे बताया की हमारी समस्या को सरकार ने बड़े ही संजीदे तरीके से लिया और इसका हल निकालने के लिए एक सयुंक्त जाँच कमिटी का गठन किया है | इस बात को सुनकर हमे बड़ी ख़ुशी हुई | पंच साहेब ने बताया की कमिटी की रिपोर्ट ३ महीनो में आ जाएगी | 
३ महीने, तब तक हम  tight jeans से काम चलाते रहे | गाव वाले कभी हमे सचिन सचिन चिड़ाने लगे थे | जैसे तैसे ३ महीने बिताये लेकिन उसके बाद में भी जब कुछ नहीं हुआ तो हम फिर से  पंच के शरण  में पहुच गए | पंच हमे सरपंच के पास ले गए, सरपंच विधायक के पास, विधायक सांसद के पास | सांसद तो हमे देखते ही भड़क उठे | 
उन्होंने बताया की रिपोर्ट तो १ महीने में ही आ गयी थी लेकिन सरकार पर दबाव है | रिपोर्ट अब आने में टाइम लगेगा १-२ साल के बाद ही रिपोर्ट आएगी | सांसद ने समझाया सरकार को डर है इस रिपोर्ट के आने के बाद कही jeans बनाने वाली कम्पनियों को प्रॉब्लम ना हो जाये | अगर उन्हें कुछ हुआ तो पार्टी को अगले चुनाव के लिए चंदा नहीं मिलेगा | विपक्ष भी इस मौके को छोड़ेगा नहीं | वैसे भी जब पिछले चुनाव में उन्हें इन कम्पनियों ने चंदा नहीं दिया था, विपक्ष वाले तभी से इंतज़ार में है की कुछ मुद्दा मिले और पुरे jeans कारोबार पर ताला जड़ दे | बात यही तक होती तो भी हम लोग निपट लेते इस रिपोर्ट का असर तो अमेरिका से होने वाली संधि पर भी पड़ेगा | अमेरिका चाहता है की भारत में वहा के धागे से ही  jeans बने | अब जब कम्पनी ही नहीं होगी तो धागे कहा से आयेंगे| 
इतना सुनते ही पंच और सरपंच परेशान हो गए | अगर हमारी tight jeans  की बात अमेरिका तक पहुच गयी और उसे पता चल गया की उसके धागे की धंधे में हमारी वजह से रुक गया तो हमसे बदला लेने पुरे गाव पे मिसाइल गिरा देगा | सरपंच ने हमारे पाँव पकड़ लिए और बोले ओमी भैया लगे तो हमारी धोती पहन लो लेकिन अब इस tight jeans की बात को जाने दो | अब वक़्त और हालत ने हमे पुरे गाव का तारणहार बना दिया | हमने भी अपने निजी हितो को त्याग करके अपनी jeans को आग लागा दी और धोती अपना ली | धोती पहनने का एक और फायदा है यह कभी tight नहीं होती |

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