Friday, September 3, 2010

अपराधियों की प्रतियोगिता

कलयुग है और कलयुग में कुछ भी हो सकता है| ऐसे ही एक कलयुगी घटना घटी हमारे पड़ोस के गाव में घटी| पड़ोस के गाव में रखी गयी अपराधियों की प्रतियोगिता| सुना था अपराध करना बुरा है, पाप है लेकिन अब तो अपराधियों को सामाजिक स्वीकार्यता मिल चुकी है| अपराधी ही हमारे विधायक और सांसद है| पुलिस वाले भी खुद को पीछे कैसे रखे वो अभी अपराधी बनने लगे है| अब ऐसे  दौर में ये प्रतियोगिता इतनी अजीब बात भी नहीं थी| खैर इस अपराध की काली छाया हमारे गाव में अभी उतनी बड़ी नहीं हुई थी| पुरे गाव में एक ही गुंडा था| कलयुग का प्रताप समझो की यह गुंडा भी हमारे गाव के सम्मानित व्यक्ति मास्टरजी का बेटा था| गाव वालो ने तय किया की मास्टरजी के बेटे रामचरण को ही हमारे गाव के तरफ से इस प्रतियोगिता में भेजा जाये|

पुरे गाव के सामने सर उठा कर चलने वाले मास्टरजी इतने सारे लोगो को आता देखा घबरा गए| उन्हें अंदाज़ा होगया की फिर से रामचरण ने कुछ गड़बड़ की है| इससे पहले की हम कुछ कहे रामचरण अंदर से बाहर निकला| उसे देख कर हम दर गए और एक  कदम पीछे हटे| भागवान बुरा करे पीछे वालो को जो पीछे हटने की जगह अपने जगह पर खड़े रहे और उल्टा हमे आगे धकेल दिया|  हम अपनी पुरानी जगह से आगे गए और रामचरन के और पास|  इतने पास की वोह आसानी से हमारा तेटूवा दबा सकता था| रामचरण में हमे देख कर बोला "काहे बे ओमी ये क्या नौटंकी लाये हो साले उल्टा लटका के इतना मारेंगे की तुम्हारी tight jeans भी ढीली होके पजामा और कुरता दोनों बन जाएगी "| ये शायद पहली बार था जब मास्टरजी अपने बेटे की गुंडागर्दी देख रहे थे| जिस आदमी ने ना जाने कितनो बच्चो के भविष्य बनाये आज वो अपने ही बेटे का बर्बाद वर्तमान देख रहे थे| हमने हिम्मत करके कहा "पड़ोस के गाव में अपराधियों की प्रतियोगिता होरही है और हमारे गाव के सबसे बड़े गुंडे लुच्चे और कमीने तो रामचरण ही है| गाव वाले सोच रहे है की आप ही इस प्रतियोगिता में जाये और गाव को जीत दिलाये "| अपने बेटे का चरित्र चित्रण सुन कर मास्टरजी रोते हुए घर के अंदर चले गए| बाप के आंसू और बेइज्जती ने तो अच्छो अच्छो को बदल दिया है| रामचरण किस खेत की मुली थे| पहली बार रामचरण ने देखा उसके कर्मो के कारन उसके पिताजी में क्या बीत रही थी| "पगला गए हो ओमी भैय्या" इस बार रामचरन क आवाज़ में अपनी ताकत का अभिमान नहीं था| रामचरण रुवासा होके बोले "कैसी बात कर रहे हो, ऐसी प्रतियोगिता में भेज रहे हो जिसमे गाव जीत के बदनाम होजायेगा| आप सभी गाव वालो से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगते है| ये समझ लो की लड़कपन की गलती होगई, आज के बाद यह सब बंद| अरे इस प्रतियोगिता में क्या भाग लेना और जितना| खेल कूद में जीतो, पड़ाई लिखाई में जीतो "

अब प्रतियोगिता कोई भी गाव जीते, हमारे गाव को तो इनाम पहले ही मिल गया था| रामचरण सुधर गए अब और क्या चहिये था| लेकिन रामचरण ने हमारे लिए मुसीबत करदी| इस प्रतियोगिता में जीतने के बाद होने वाली बदनामी के कारन गाव वालो ने सोचा की इसी प्रतियोगिता में ऐसे इन्सान को भेजे जो हार जाये| "पुरे गाव में ओमी भैय्या से सीधा और सच्चा और कोई नहीं है" रामचरण हमारे कंधे पार हाथ रख बोले| उल्टा लटकाने से लेकर हमारे चरित्र चित्रण का ये सफ़र बड़ा ही अजीब था| अब वक़्त और हालत ने हमे ही प्रतियोगी बना दिया अब गाव की इज्जत हमारे हाथ में थी| बस अपना रथ (सायकल) लेकर निकल पड़े अपना कर्म करने के लिए|

4 comments:

  1. simple and meaningful .... good one !

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  2. क्या बात है!! अंग्रेजी चिट्ठों के बीच मे हिंदी पढ़ के ऐसा आनंद आया जैसे की सूखी रोटी पे घी डाल दिया गया हो! कहानी थोड़ी ज्यादा छोटी हो गयी, वर्ना और मज़ा आता. लिखते रहें ओमी भैया...!

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  3. It was good to read a post in Hindi after really long. Thoroughly entertained! :)

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