"प्यार मोहब्बत लिख लो, देश मे फैले भ्रस्टाचार पे लिख लो, या फिर से कोई नया हंगामा खड़ा करना होतो किसी कि ऐसी तैसी वाला लेख लिख लो, हमे इससे मतलब नही कि तुम क्या लिखोगे, बस हमे लिख कर देदो, हमे बस उसे छपवाना है" सरपंच ने ओमी से कहा| ऐसे साहित्य के कदरदानो के कारण ही पिछ्ले साल भी ओमी का एक लेख शहर के अखबार मे छापा था| लेकिन उस लेख ( इंजिनियर क्यों लिखते है ) के कारण बहुत हंगामा हुआ था| ऐसे लेखक जिनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी, उन्होंने ओमी को बहुत कोसा था| उनमे से कुछ ने ओमी के लिखने पर आजीवन पाबन्दी की भी बात की थी| अब लेखक को लिखने नहीं देंगे, ये पाबन्दी तो नसबंदी से भी बुरी होगी| ऐसे इंजीनियर जिन्होंने अपने इम्तिहानो में भी कुछ नहीं लिखा था, लेखक बनने का सपना देखने लगे थे| कुछ ने तो ब्लॉग भी शुरू कर दिए और कुछ ने सच में एक-दो चीज़े भी लिख ली| लेकिन ये लिखते ही वो लेखक बन गए और उन्होंने ने भी ओमी कोसना शुरू कर दिया| ओमी को समझ में नहीं आरहा था की वो क्या लिखे|
प्यार मोहब्बत की बाते लिखने तो उसने कॉलेज के दिनों से छोड़ दी थी| जब उसकी प्रेम कविता नामक कविता पढने पर लोगो ने ये जानने के लिए उसे परेशान कर दिया था, कि ये कविता किसके लिए लिखी गयी थी| अगर कोई भी लेखक इतना सोच के लिखता तो कभी भी कोई बवाल नहीं होता| ओमी ने बस हिंदी के दो-चार शब्द उठाये जो मन में आया लिख दिया| उसे नहीं पता था की प्रेम कविता लिखने के लिए प्रेम करना भी जरुरी है| ज़माने की ये रीत भी अजीब है, वेद व्यास जी ने महाभारत लिखी उनसे किसी ने नहीं पूछा की आपने लड़ाई कब की थी| लेकिन अगर ओमी के प्यार मोह्हब्ब्त की बात कर दे, जो पीछे पड़ जाते है की "वो कौन थी"
ओमी ने सोचा क्यों देश के इतिहास पर ही कुछ लिख ले| लेकिन जिस देश का इतिहास सरकारों के साथ बदलता है, सरकारों के बदलने के साथ नया घटनाक्रम जुड़ जाता है, कुछ शहीदों को भुला दिया जाता है, तो कुछ वीरो को चोर बताया जाता है, वहाँ न जाने कब सच निकल जाये| अगर सच ऐसा हो जिससे किसी राजनैतिक दल को नुकसान होने का डर होतो गए काम से| नुकसान तो भी बड़ी बात है अगर किसी खाली और हारे हुए नेता ने पढ़ लिया तो बेवजह ही मुददा बनेगा | ओमी का कुछ बिगड़े न बिगड़े, उसका पुतला जरुर जलेगा| इतिहास से निराश होकर ओमी ने सोचा कि देश के भविष्य पर कुछ लिखे| क्यों न वो 2020 में देश कि तस्वीर का खाका रचे| ओमी ने बड़ी मेहनत करके जो लिखा | नेताओ की वर्तमान में जो सोच है, समझ है उससे तो वो 2050 का सपना लग रहा था| अब आज से चालीस साल बाद क्या होगा किसको पड़ी है? यहाँ तो लोगो को समझाओ कि अगर बारिश में पानी बहाया तो गर्मी में पानी नहीं मिलेगा| फिर भी उनके समझ में कुछ नहीं आता ऐसे में उन्हें चालीस साल की प्लानिंग कौन समझाए| ऐसे में तो वर्त्तमान कि घटनाओ पर ही कुछ लिखना बेहतर होगा|
ओमी ने सोचा क्यों न देश में फैले भ्रस्टाचार पर कुछ लिखे| CWG , 2G और न जाने ऐसे कितने इधर उधर के घटनाओ ने ये बता दिया था कि किस कदर अपनी ही थाली में छेड़ करने वाले जिम्मेदार नेता हमारे देश में है| ओमी ने सोचा ये चीज़े तो जगजाहिर है| रोज अखबारों में छपती है| लोग अखबारों में पढ़ते है और अपनी योग्यता के अनुसार नेताओ को गालिया भी देते है| कोई कमीने पर ही रुक जाता है तो कोई खानदान को भी नहीं छोड़ता| हमारे देश में ऐसे नेता अब उन छिछोरे लड़कों के तरह है जो स्कुल जाने वाले लडकियों को छेड़ते है| लडकियों को लगता है ये ज़िन्दगी का हिस्सा है, लड़किया भी अपनी योग्यता अनुसार लडको को गालिया देती है और स्कुल चली जाती है| अब ऐसे माहौल में वो क्या लिखे? अगर ओमी के लिखने से कोई हंगामा हो भी गया तो क्या होगा| नेता इस्तीफा दे देगा| इस्तीफा न हुआ गंगा का स्नान होगया| उनके सारे पाप धुल गए| अब उनसे गबन हुए पैसो के बारे में कोई नहीं पूछेगा| ओमी को आजतक समझ नहीं आया कि लोग इस्तीफा क्यों देते है पैसे क्यों वापस नहीं कर देते| तो ऐसे विषय पर लिखने से क्या फायदा वैसे ही बहुत बुद्धिजीवी है इस विषय पर विचार करने के लिए|
अब ओमी ने सोचा क्यों न बुधिजिवियो के बारे में भी कुछ लिख ले| वैसे ओमी को बुद्धिजीवी परजीवी लगते है, हमेशा दुसरो के द्वारा उत्पन्न कीये गए घटनाक्रमों पर जीने वाले लोग| यह एक ऐसा वर्ग है जो आजतक किसी के समझ में नहीं आया कि कैसे बनता है| इनके सोचने का तरीका बहुत आसान होता है| ये लोग पहले देखते है कि आम जनता क्या सोच रही है| बस अब उनकी सोच को गलत साबित करो, या उनके सोच से विपरीत बाते करो, या उन्हें समझो कि कि उनके सोचने से क्या मुसीबते आएँगी बस बन गए आप बुद्धिजीवी| उदाहरण के लिए जनता ने कहा बदला चाहिए आतंकवादियों को मार दो, इस वर्ग ने जनता को समझाने की कोशिश कि उन्हें जीने का हक़ है उन्हें जीने दो| जनता ने कहा अयोध्या का फैसला अच्छा है सब मिल बाट कर रहेंगे तो इन्होने कहा कि नहीं नहीं ये फैसला अच्छा नहीं है उसमे बहुत complications (उलझने) है| कश्मीर के हसीन वादिया हो या बस्तर का घना जंगल, ये हर जगह पहुच जाते है| सरकार के खिलाफ बोलते बोलते इन्हें पता ही नहीं चलता कि कब इन्होने देश के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है| इन्हें समझाने वाला अगर ताकतवर है ये तो वो रुढ़िवादी, और अगर समझाने वाला गरीब तो वो नासमझ| अब ऐसे में ओमी न तो ताकतवर था न गरीब तो उसे ये लोग क्या कहेंगे इसी डर से उसने सोचा कि इनके बारे में भी क्यों लिखे|
ओमी के अभी तक कुछ नहीं लिखा था| उसके सामने दो सवाल थे क्या लिखे और क्यों लिखे| क्या लिखे इसका कोई महत्व नहीं था, लेकिन क्यों का बड़ा ही महत्व था| सरपंच ने कहा था तो लिखना ही पड़ेगा| लेकिन ओमी की समझ में अभी भी नहीं आया है कि वो क्या लिखे, अगर किसी के पास कोई सलाह होतो ओमी को दे देवे|