"बचपन में जब खेलना कुदना चाहिए, तब ये लोग सुबह जल्दी उठकर, रातो को जग जग कर, मर मर के पड़ते है फिर बड़े होके इंजीनियर बनने के बाद, काम करने की जगह लिखना शुरू कर देते है| हमे यह नहीं समझ आता जब लिखना ही था तो कला क्षेत्र की पढाई करनी था ना तकनिकी की क्यों की?" हम अपनी भड़ास निकाल रहे थे| भड़ास किस बात की है ये बाद में बताएँगे (क्युकि अभी तक लिखा नहीं है)
बड़के भैया( हमारे मौसी के बड़े लड़के, बंगलौर में इंजीनियर है किसी विदेशी कम्पनी में) हमे समझाते हुए बोले ओमी ऐसे बिगड़ने से क्या होगा तुम कोशिश करते रहो कुछ ना कुछ होजायेगा| अरे क्या खाक होगा इंजीनियर को अपना काम करना चाहिए और लेखक को अपना क्या जरुरत है ब्लॉग, किताब या कविताये लिखने की| अब आप ही बताओ क्या आपने कॉलेज में मोटी मोटी किताबे कविताये या उपन्यास लिखने के लिए की थी| हमे भड़कता देखे बड़के भैय्या बोले तुम्हे गुस्सा नहीं सहानुभूति होनी चाहिए|
इंजीनियर बचपन से पड़ता है इस उम्मीद में एक दिन काम करेगा लेकिन जब काम करने का समय आता है तब और भी बहुत कुछ आ जाता है अब जैसे कोई सरकारी कार्यालय में है बड़ी बड़ी फाइल है लेकिन लिखता कौन है? क्लर्क वो भी पैसे लेके और अगर इंजीनियर उस फाइल में कुछ फेरबदल करना चाहे भी तो कर नहीं सकता| किसी इंजीनियर को ना लिखने की कीमत मिल जाती है और किसी को धमकी| अब बेचारा इंजीनियर लिखे कहा? जो कोई सोचे कार्यालय से बाहर निकाल कर हो रहे कामो को ही देख ले| तो पहले तो छोटे, मोटे, पतले या दुबले बाबु उन्हें बाहर निकलने नहीं देते, जो बाहर निकाल आये भी तो गुंडे, बदमाश, नेता, ठेकेदार उन्हें काम की जगह पर पहुचने नहीं देते और जो एक्का दुक्का पहुच भी जाते है तो बेचारे वापस नहीं आते| अब इन सबसे तो अच्छा ही है की वो कुछ लिख ही ले| भ्रस्टाचार के खिलाफ लिख के(चाहे उसे कोई पड़े ना पड़े) इन्सान की भड़ास तो काम हो जी जाती है इसीलिए यह इंजीनियर भी लिख लेते है
बड़के भैय्या ठीक है सरकारी तो लिख ले लेकिन आपके जैसे बड़ी बड़ी विदेशी कम्पनी में काम करने वाले इंजीनियर अरे वो तो ऑफिस में बैठके, ऑफिस के कंप्यूटर से ब्लॉग लिखते रहते है
उन्हें क्या जरुरत है लिखने की?
अरे ओमी उन्हें तो सबसे ज्यादा जरुरत है कम्पनी ज्वाइन करते ही वो बेचारे सोचते है की कोडिंग करेंगे, लेकिन कोडिंग के नाम पर उन्हें मिलते है वही पुराने कोड जिसे वो बस थोडा बहुत बदल देते है| कुछ तो बस अपना नाम चस्पा कर देते है कोड में बिना किसी फेरबदल के| अपना समय निकलने के लिए उनमे से कुछ CAT की परीक्षा दे देके समय बिता देते है, कुछ CAT की coaching देने वाली संस्थाओ के चक्कर लगाकर समय बिताते है, और कुछ के लिए तो यह विचार की CAT देना है या नहीं ही बहुत होता है समय बिताने के लिए| कुछ खुशनसीब जो मेहनत और किस्मत से कोड को छूने वाले होते है, उन्हें उनके ऑफिस के होने छोटी, मोटी, अर्जेंट, weekly, monthly , long या short मीटिंग काम करने नहीं देती| तुम नहीं समझोगे ओमी भैया सब मन कसोट के रह जाते है| इसीलिए यह बेचारे अपने उस कंप्यूटर पर जिसपर काम करना चहिये था, ब्लॉग लिखना शुरू कर देते है
बड़के भैय्या की बाते सुन कर हमे अपने ही शत्रु से सहानुभूति होने लगी| अब वक़्त और हालत ने हमे लेखक इंजीनियर के मन की उद्वेलना से परिचित करा दिया| हमारी भड़ास भी कम होगई थी, और मन भी हल्का होगया| अपने शत्रु की दयनीय अवस्था देख कर खुश होना मनुष्य का स्वाभाव है|
(भड़ास किस बात की थी यह बाद में बतायंगे अभी तो सारे इंजीनियरों के लिए दुआ मांगिये की उन्हें ज्यादा और अच्छा काम मिले)
बड़के भैया( हमारे मौसी के बड़े लड़के, बंगलौर में इंजीनियर है किसी विदेशी कम्पनी में) हमे समझाते हुए बोले ओमी ऐसे बिगड़ने से क्या होगा तुम कोशिश करते रहो कुछ ना कुछ होजायेगा| अरे क्या खाक होगा इंजीनियर को अपना काम करना चाहिए और लेखक को अपना क्या जरुरत है ब्लॉग, किताब या कविताये लिखने की| अब आप ही बताओ क्या आपने कॉलेज में मोटी मोटी किताबे कविताये या उपन्यास लिखने के लिए की थी| हमे भड़कता देखे बड़के भैय्या बोले तुम्हे गुस्सा नहीं सहानुभूति होनी चाहिए|
इंजीनियर बचपन से पड़ता है इस उम्मीद में एक दिन काम करेगा लेकिन जब काम करने का समय आता है तब और भी बहुत कुछ आ जाता है अब जैसे कोई सरकारी कार्यालय में है बड़ी बड़ी फाइल है लेकिन लिखता कौन है? क्लर्क वो भी पैसे लेके और अगर इंजीनियर उस फाइल में कुछ फेरबदल करना चाहे भी तो कर नहीं सकता| किसी इंजीनियर को ना लिखने की कीमत मिल जाती है और किसी को धमकी| अब बेचारा इंजीनियर लिखे कहा? जो कोई सोचे कार्यालय से बाहर निकाल कर हो रहे कामो को ही देख ले| तो पहले तो छोटे, मोटे, पतले या दुबले बाबु उन्हें बाहर निकलने नहीं देते, जो बाहर निकाल आये भी तो गुंडे, बदमाश, नेता, ठेकेदार उन्हें काम की जगह पर पहुचने नहीं देते और जो एक्का दुक्का पहुच भी जाते है तो बेचारे वापस नहीं आते| अब इन सबसे तो अच्छा ही है की वो कुछ लिख ही ले| भ्रस्टाचार के खिलाफ लिख के(चाहे उसे कोई पड़े ना पड़े) इन्सान की भड़ास तो काम हो जी जाती है इसीलिए यह इंजीनियर भी लिख लेते है
बड़के भैय्या ठीक है सरकारी तो लिख ले लेकिन आपके जैसे बड़ी बड़ी विदेशी कम्पनी में काम करने वाले इंजीनियर अरे वो तो ऑफिस में बैठके, ऑफिस के कंप्यूटर से ब्लॉग लिखते रहते है
उन्हें क्या जरुरत है लिखने की?
अरे ओमी उन्हें तो सबसे ज्यादा जरुरत है कम्पनी ज्वाइन करते ही वो बेचारे सोचते है की कोडिंग करेंगे, लेकिन कोडिंग के नाम पर उन्हें मिलते है वही पुराने कोड जिसे वो बस थोडा बहुत बदल देते है| कुछ तो बस अपना नाम चस्पा कर देते है कोड में बिना किसी फेरबदल के| अपना समय निकलने के लिए उनमे से कुछ CAT की परीक्षा दे देके समय बिता देते है, कुछ CAT की coaching देने वाली संस्थाओ के चक्कर लगाकर समय बिताते है, और कुछ के लिए तो यह विचार की CAT देना है या नहीं ही बहुत होता है समय बिताने के लिए| कुछ खुशनसीब जो मेहनत और किस्मत से कोड को छूने वाले होते है, उन्हें उनके ऑफिस के होने छोटी, मोटी, अर्जेंट, weekly, monthly , long या short मीटिंग काम करने नहीं देती| तुम नहीं समझोगे ओमी भैया सब मन कसोट के रह जाते है| इसीलिए यह बेचारे अपने उस कंप्यूटर पर जिसपर काम करना चहिये था, ब्लॉग लिखना शुरू कर देते है
बड़के भैय्या की बाते सुन कर हमे अपने ही शत्रु से सहानुभूति होने लगी| अब वक़्त और हालत ने हमे लेखक इंजीनियर के मन की उद्वेलना से परिचित करा दिया| हमारी भड़ास भी कम होगई थी, और मन भी हल्का होगया| अपने शत्रु की दयनीय अवस्था देख कर खुश होना मनुष्य का स्वाभाव है|
(भड़ास किस बात की थी यह बाद में बतायंगे अभी तो सारे इंजीनियरों के लिए दुआ मांगिये की उन्हें ज्यादा और अच्छा काम मिले)
Good critics but u can make it more intersting by putting some drama
ReplyDeletehamare liye bhi dua kijiye :) hum aapke liye kardege...
ReplyDeleteApne Omi bhaiya aajkal bahut bhadas nikal rhe hai...
ReplyDeletekafi sateek, spashth aur sadharan bhasha hai!!!!!!!
ReplyDelete1 dum bhannat