Saturday, December 4, 2010

खौफ

(इस कहानी ने ब्लोग्शवर 6 की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली कहानी होने का ख़िताब जीता| )

चाँद की रौशनी और सड़क के किनारे लगे बल्ब कि आधी अधुरी रौशनी में उसे सड़क के किनारे अजीब सी परछाई दिख रह थी| भरत ने सुना भी था की यहाँ पर सर कटे हुए भूत रहते है शायद ये परछाई इन्ही की हो, इनमे से कोई उसे पकड़ ना ले उसे ये डर सता रहा था| उसके माथे से टपक रहा पसीना, धमनियों में लहू का प्रवाह और ह्रदय की तेज धडकनों से साफ़ था की वो बेहद डरा हुआ था| यह डर उसे आगे बढने से रोकने के लिए काफी था भरत ने कई बार पीछे लौटने की भी सोची लेकिन आज उसके वापस लौटने के कोई गुंजाईश नहीं थी|
और वापस लौट के गया भी तो वो कुत्ते फिर से वही होंगे| भरत अक्सर स्कुल जाते समय बाकी छात्रो का इंतज़ार करता था| गाव के आवारो कुत्ते से उसे इतना डर लगता था कि वो सोच भी नहीं सकता था कि कभी इस रास्ते से वो अकेले गुजरेगा वो भी रात के एक-दो बजे के आस पास| भरत जब घर से निकला तो उसे बिलकुल भी याद नहीं था कि उसे उसी रास्ते से गुजरना होगा| जब भरत मोड़ पर पहुंचा तो उसने देखा की कुत्ते कचरे के ठेर में अपना खाना खोज रहे थे| खाना खौजने के दौरान वो अक्सर एक दुसरे पर गुर्रा रहे थे और कभी एक दुसरे की मुह से खाना भी छीन रहे थे| भरत को लगा जैसे ये सारे उसे भी खा जायेंगे| उसने सोचा कि शायद वो तेज दौड़ कर भाग सकता है ताकी कुत्तो को पता चलने से पहले सी दुर निकल जायेगा या फ़िर चुपचाप धीरे धीरे निकल सकता है| उसने सोचा सड़क के दुसरे किनारे से धीरे धीरे जाना ही बेहतर है| सड़क के दुसरे किनारे से उसने धीरे धीरे आगे बढना शुरू किया| इस तरह चल रहे भरत की नज़र हमेशा कुत्तो पर ही टिकी हुई थी| कुत्तो के बीच हो रही लड़ाइयो को देख कर उसे बहुत डर लग रहा था| इतनी रात को उनके गुर्राने की आवाज़ बड़ी भयावह लग रही थी| कुछ दुर जाते ही एक कुत्ता उसे देख कर गुर्राया और जल्द ही सारे उसकी ओर देख कर भौकने लगे| उसकी टांगे कापनी लगी थी और बिना कुछ सोचे समझे उसने दौड़ना शुरू कर दिया| अपने बहुत पास कुत्ते कि भौकने कि आवाज़ सुन कर वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा| उसे एक पल के लिए ऐसे लगा जैसे ये कुत्ते उसे चीर फाड़ कर खाने वाले है| उनके मुह से टपक रही लार, बड़े बड़े दात, अँधेरे में और भी डरावने लग रहे थे| ज़मीन पर गिरे हुए भरत ने महसुस किया कि उसके हाथ के पास कुछ इटे पड़ी है उसने उन्हें उठा कर कुत्ते कि तरफ दो तीन इटे फेंकी| उसके इस प्रहार से कुत्ते डर कर भाग गए लेकिन भरत लेटा रहा उसे यकींन नहीं होरहा था कि वो चले गए| या शायद उसे समझ में नहीं आरही था कि वो क्या करे| आठ साल के बच्चे के लिए ये बहुत बड़ी घटना थी| उसे अभी और भी दुर जाना था| सांसे स्थिर होने के बाद भरत वहा से उठा और आगे बढ़ने लगा|

अब वो गाव के बाहर खेतो की ओर जाने वाली सड़क पर आगया था| नहर के ऊपर बने पुलिए को पार करना अब उसके लिए अगली चुनौती थी| चाँद की रौशनी और सड़क के किनारे लगे बल्ब कि आधी अधुरी रौशनी में उसे पुलिए के ऊपर अजीब सी परछाई दिख रह थी| भरत ने सुना भी था की यहाँ पर सर कटे हुए भूत रहते है शायद ये परछाई इन्ही की हो, इनमे से कोई उसे पकड़ ना ले उसे ये डर सता रहा था| उसके माथे से टपक रहा पसीना धमनियों में लहू का प्रवाह और ह्रदय की तेज धडकनों से साफ़ था की वो बेहद डरा हुआ था| यह डर उसे आगे बढने से रोकने के लिए काफी था भरत ने कई बार पीछे लौटने की भी सोची लेकिन आज उसके वापस लौटने के कोई गुंजाईश नहीं थी| पुलिए से गुजरना मतलब अपनी मौत को बुलाना था| भरत ने सोचा नीचे उतर कर वो नहर से होके जा सकता है वहा थोडा पानी होगा लेकिन कम से कम भूतो से तो बच जायेगा| रोड से नीचे उतर कर वो नहर पर करने के लिए आगे बढ़ा| इतना कम रौशनी में आगे बढ़ता हुआ भरत किसी चीज़ से टकरा कर नीचे गिर पड़ा| जहा पर वो गिरा था कुछ जानवरों की हड्डिया पड़ी हुई थी| उन हड्डियों को देख कर उसे यकींन होगया कि वहा सचमुच भुत रहते है, और ये हड्डिया उन्होंने ने ही फेंकी है| अब भरत बहुत डरा हुआ था| अगर किसी भुत ने उसे पकड़ लिया तो बाबा तक कैसे जायेगा| उसने अपने बाबा को भी कोसा कि उनका खेत पुलिए के उस पार क्यों है| काश इस पर ही होता तो अब तक वो वहा पहुँच चुका होता| लेकिन अब ये सब सोचने से क्या फायदा? वो नीचे नहर में उतर गया उसे लगा था कि पानी सिर्फ घुटनों तक होगा| लेकिन उसे नहीं पता था कि आज सुबह ही नहर में पानी छोड़ा गया था| नहर में उतरते ही उसने महसुस कि पानी उसके छाती तक आ चुका था| और पानी का बहाव भी थोडा तेज था| उसे लगा कि वो नहर पार कर सकता है लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका शरीर उस बहाव के सामने कुछ नहीं था| थोडा और आगे बढ़ते ही भरत पानी के साथ बह निकला, वो तो पुलिए के नीचे बहुत सारी लकड़िया थी जो भरत उनसे टकरा कर वही रुक गया| लेकिन उसे इस दौरान कुछ चोट भी आयी थी| उसकी किस्मत अच्छी थी जो नहर पुरी नहीं खोली गयी थी| पानी बहाव अगर और तेज होता तो शायद भरत को कोई नहीं बचा पता| लेकिन उसका डर और बड़ गया था क्युकि वो भूतो के और करीब आगया था| उसे डर लग रहा था कोई भुत उसे देख ना ले| साथ में उसे वहा से बाहर भी निकलना था| जैसे तैसे मशक्कत करके वो वहा से निकल पाया| बाहर निकला भरत खुद किसी भुत से काम नहीं लग रहा था| पुरी तरह कीचड़ में सना हुआ| नहर में हुए वाकये ने उसकी जान निकला दी थी| अब उसमे ताकत भी नहीं बची थी कि वो और आगे बढ पाए| तभी उसने ओमी चाचा को जाते देखा| उसने आवाज़ भी लगायी लेकिन ओमी ने जैसे कुछ सुना नहीं| ओमी आगे निकल गया| भरत अब रोने लगा था उसे समझ में नहीं आरहा था कि वो क्या करे| उसे लगा कि अब ओमी ही उसे बचा सकता था| रोता हुआ भरत ओमी की तरफ दौड़ने और आवाज़ देने लगा "ओमी चाचा"|

"ओमी चाचा " अँधेरे में ये आवाज़ सुनकर जब ओमी ने सायकल रोक कर आसपास देखा तो उसे अँधेरे की सिवा कुछ ना दिखा| ओमी लगा जैसे कोई भ्रम हो लेकिन फिर से जब आवाज़ आयी तो ओमी ने धयान दिया कोई बच्चा दौड़ता हुआ पास आरहा है| पास आने पर ओमी ने देखा ये तो भरत था, कीचड़ में सना हुआ, रोता हुआ| उसकी ये हालत देख कर ओमी भी घबरा गया| ओमी कुछ पुछता उससे पहले ही भारत ने कहा "दादी की तबियत ख़राब होगई है बाबा को बताने खेत जारहा था"| ओमी ने भरत को सायकल पर बैठाया और कहा पहले डॉक्टर को बुलाएँगे फिर बाबा को बताएँगे| रास्ते भर भरत ने ओमी को बताया कैसे अचानक दादी की तबियत बिगड़ने पर उसे बाबा को बुलाने के लिए निकलना पड़ा| अम्मा ने उसे भेजा था बाबा को बुलाने के लिए और बड़ी मुश्किलों के बाद यहाँ पहुंचा| उसने ये भी बताया की रास्ते में उसके साथ क्या क्या हुआ| डॉक्टर के घर जाने पर पहले उन लोगो ने भरत को नहलाया और उसकी मरहम पट्टी की | फ़िर डॉक्टर भरत की घर के ओर और भरत ओमी के साथ बाबा को बुलाने खेत गया| जब भरत ओमी और भरत के बाबा घर पहुंचे| तब तक डॉक्टर ने दवाई देकर दादी को सुला दिया था| अम्मा ने भरत को देखते ही गले से लगा लिया| भरत को नहीं पता आज उसने कितना बड़ा काम किया था| उसके जेहन में तो अभी वही डर था| 



यह कहानी ब्लोग्शवर एवंम अनुभूति की प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी है  

2 comments:

  1. beautifully narrated...ek bachche k darr ko bahut khubsoorti se darshaya hai aapne :)
    good luck with the contest !
    sarah

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