Saturday, November 5, 2011

चुप्पी



ओमी और राघव नदी के किनारे भीगे हुए बैठे थे| बहुत देर से किसी ने कुछ कहा नहीं था, आखिर कार ओमी ने कहा "चले?" राघव अभी भी अनंत में देख रहा था, शायद उसने ओमी की बात सुनी नहीं या सुनकर भी अनसुनी कर दी| ओमी ने फिर से पूछा "चले, इसी तरह बैठे रहे तो, ठण्ड लग जाएगी" जिस इन्सान ने अभी अभी आत्महत्या का प्रयास किया हो, उसे ठण्ड लगने का बहाना देना शायद कोई महत्व नहीं रखता| लेकिन राघव शायद मरना भी नहीं चाहता था, इसीलिए तो वापस पानी में नहीं कूदा था| ओमी को भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे और क्या न कहे, अब आत्महत्या के प्रयास करने वालो से इन्सान कहे भी तो क्या, पूछने से बताएगा? और ज्यादा कुरुदने पर कही फिर से कुछ उल्टा सीधा न कर ले| ओमी भी बैठा हुआ था, और सोच रहा था कि कैसे वापस राघव को लेकर जाये|

यु तो लगभग हर फिल्मी और कहानी वाले गाँव के पास नदी होती है, तो ओमी के गाँव के पास भी नदी थी| लेकिन ओमी नदी किनारे बैठा सोच रहा था कि काश ये नदी नहीं होती, लेकिन नदी के होने न होने से क्या फर्क पड़ता है| नदी न होती तो नाला होता, तालाब होता या कोई छोटा बड़ा कुआ होता| गाँव की पानी की जरुरत के लिए ऐसे साधन तो होते ही है लेकिन इनके और भी उपयोग है या कहिये दुरपयोग| और लोग तो घर के पंखो से भी लटक जाते हैं उनका क्या| ओमी और राघव अभी वहा मूर्तियों की तरह बैठे थे, ओमी ने इस बार राघव पर जोर दे कर कहा "अब चलो भी, मुझे ठण्ड लग रही है, शायद कही तबियत ख़राब न होजये" राघव ने इस बार उत्तर दिया "हमने तो नहीं कहा था कि पानी में कूदो, चैन से मरने दिया होता तो हम भी मर जाते और तुम्हे ठण्ड भी नहीं लगती|" ओमी का मन तो हुआ कि कहे वापस कूद जाओ और इस बार हम बचायेंगे भी नहीं| लेकिन उसे पता था कि राघव अभी अपने आपे में नहीं है, न जाने किन विचारो ने उसे कैद कर रखा है तभी तो नदी में कूदा था| 


हमारा मन भी अजीब है कभी सोचते सोचते हम दूर निकल जाते हैं तो कभी उन्ही ख्यालो में बंध कर रह जाते हैं, और ऐसे विचार हमारे मस्तिष्क में सड़न पैदा करते हैं जो मनुष्य को गलत फैसलों के ओर ले जाते हैं| नदी के किनारे चलने वाली ठंडी हवा भी हमेशा सुहानी नहीं लगती| कभी कभी हमारे मन में चल रही उथापोह उन्हें चुभने वाली हवा बना देती है| नदी का कल कल करता पानी भी सुन्दर नहीं लगता ऐसा लगता है जैसे पानी की हर एक तरंग में एक उलझन है, एक सवाल है, एक ताना है, अपनी जिंदगी के मायने तलाशने को असफल मन नदी के किनारे बैठ कर उसे निहार नहीं पाता|  वापस जाने का साहस भी नहीं होता, क्यूंकि वापस जाने के रास्ते पर जैसे धिक्कारने वाली हज़ारों आवाज़े गूंजती रहती हैं| कभी कभी ये भाव किसी घटना से टूट जाते है और कभी इतना साहस आ जाता है कि वापस चले जाए| लेकिन हर व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होता, कभी कोई क्षणिक उन्माद उसे अनंत में समां जाने की और धकेल देता है, इस उन्माद को हम आत्महत्या भी कहते है, वो चाहे पानी के सवाल हो या अपने कमरे के अकेलेपन में गूंजते सवाल, क्षणिक उन्माद ही तो होता है, मृत्यु को जीने का उन्माद, अपनी हर समस्या को हल कर लेने का उन्माद जो एक ऐसे दरवाजे की ओर ले कर जाता है जिसके दूसरी ओर क्या है किसी को नहीं पता|

"वापस जाकर क्या करूँगा?" राघव ने कुछ देर बाद पूछा| इससे पहले कि ओमी कुछ कह पता राघव ने खुद ही कहा "तुम्हे लग रहा होगा कि हम बेवकूफ है जीवन का मोल नहीं जानते, लेकिन ऐसे जीवन का क्या मोल जिसमे सिर्फ दुःख ही दुःख हो| पिछले साल कर्जा इतना बढ गया था कि समझ में नहीं आया क्या करे? लगा शायद ज़िन्दगी देने से समस्या हल हो जाये, लेकिन यह गलत होगा, तो फिर सही क्या होगा? आखिर करे भी तो क्या करे, कीटनाशक की शीशी को हाथ में लेके इसी उधेड़बुन में लगे थे कि तुम्हारी भौजी ने हमे देख लिया, उसे लगा कि हम आत्महत्या कर रहे है और फिर ये बात सारे गाँव में फैल गयी| तुम्हारी भौजी अब हमसे सहमी रहने लगी, ज्यादा बाते नहीं करती थी उसे लगता कि अगर कुछ ज्यादा बोल दिया तो फिर से मैं ऐसा कदम उठा लूँगा| कुछ गाँव वाले भी मुझसे बात करने में कतराने लगे तो कुछ मजाक उड़ाने लगे| बस ऐसा समझ लो कि एक भयानक चुप्पी ने हम घेर रखा था| ऐसी चुप्पी जो लाख चाहने पर भी हमे जीने नहीं देती, बहुत कोशिश की वापस जीवन से जुड़ने की लेकिन चुप्पी की इस दीवार ने जुड़ने ही नहीं दिया, और आखिर में हार कर आज वो कदम उठा लिया जिसके बारे में सिर्फ सोचा था" और अपनी लम्बी चुप्पी के बाद, इस तरह अपने मन की बाते बोलने के बाद, राघव रोने लगा| 

ओमी को न सिर्फ राघव पर तरस आ रहा था बल्कि हमारे समाज पर भी आ रहा था| जो आत्महत्या के बारे में बड़ी बड़ी बाते तो करता हैं लेकिन जब इससे निपटने का मौका आता है तब अक्सर पीछे हट जाता हैं| क्या राघव के जीवन में पहले से ही समस्या थी और अब हमारे बर्ताव ने उसके जीवन और भी कठिन बना दिया था| आखिर क्यों सिर्फ एक गलती, और राघव ने तो वो गलती की भी नहीं थी, और हम उस इन्सान से दुरी बना लेते हैं| हमे बदलना होगा, बात करनी होगी, चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगो के लिए जिन्होंने ऐसी गलती की हैं, ऐसे लोगो के जीवन के लिए| कम से कम ओमी ने तो यह निश्चित कर लिया था कि वो ऐसी चुप्पी तोड़ेगा|

राघव के कंधे पर हाथ रख कर ओमी ने उससे कहा "इस घटना के बारे न तुम किसी को बताना और न ही हम किसी को बताएँगे, ये तो नहीं पता कि आज के बाद आपकी ज़िन्दगी में समस्या कम होगी या नहीं लेकिन कभी ऐसा रास्ता मत चुनना, और कल से रोज सुबह हमारे घर आ जाना, अम्मा की हाथ की चाय भी मिलेगी और हम आपसे बाते भी करेंगे|" ओमी और राघव दोनों अब गाँव की तरफ निकल चले या यूँ कहे ओमी ज़िन्दगी के नए सबक के साथ और राघव नयी ज़िन्दगी के साथ अब गाँव की तरफ निकल चले|

  
यह कहानी JD Schramm: Break the silence for suicide survivors से प्रेरित है| 

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