Friday, September 17, 2010

दादाजी और जलेबी


"छोटू क्या खा रहा है" दादाजी ने अपने 7 साल के पोते से पूछा | पोते ने भरे हुए मुह से जवाब दिया " चोक्लेत".  दादाजी ने उसे बहलाते हुआ कहा की कौनसी पिपरमेंट है? छोटू गुस्सा होगया और बोला "पिपल्मेंत नहीं  चोक्लेत खाला हु"| दादाजी खीज गए| बूढ़े होने के बाद अगर इन्सान के हा में हा ना मिलायी जाये तो वो खीज जाते है| खीजने के बाद शुरू होता है बडबडाने का लम्बा सिलसिला| दादाजी भी बडबडाने लगे "पिपरमेंट नहीं चोकलेट, अभी ठीक से जबान भी निकली और लगा मुझे समझाने| आजकल के माँ बाप भी पता नहीं बच्चो को क्या क्या खिलाते है| बच्चे के लिए पैसा है, जोरू के लिए पैसा है लेकिन बाप के लिए कुछ नहीं| बस अपनी जवानी में जो खा लिया तो खा लिया इनके भरोसे तो भर पेट खाना मिल जाये वही बहुत है| अरे ओमी कहा जारहे हो"| 

अगर कोई बुज़ुर्ग रोक ले तो समझो लो अब उनके जीवन का सार, बदलते समाज और अपने भविष्य की बहुत सारे बाते सुनने को मिलेगी| वैसे काशी दादा ने हमे बहुत दिनों से बुलाया भी नहीं था, हमने भी सोचा की चलो अब यही सही| हमारी अपेक्षा के अनुसार काशी दादा ने हमसे पूछा कहा जा रहे हो ओमी बेटा| हमने हमारे अनुभव से सिखा है अगर कोई बुजुर्ग कहा जा रहे हो से बात शुरू करे तो समझलो बुढाऊ ने लम्बा प्लान बनाया है| यह सवाल पूछ के बस वो यह देखना चाहते है की सामने वाला कितनी जल्दी में है और कितना समय दे पायेगा| हमने काशी दादा को बताया की हम बाज़ार जारहे है| बाज़ार के बात सुनते ही जैसे उनको कुछ याद आगया और हमसे बोले "ओमी बेटा हमारा 1 काम कर दोगे, बाज़ार जारहे हो तो हमारे लिए जलेबी ला दोगे " हमे ये सौदा बुरा नहीं लगा यहाँ बैठ कर बेकार की बाते सुनते उससे अच्छा तो यही है| उम्र के साथ इन्सान का आत्म सम्मान और बड़ जाता है| दादा को भी यही हुआ उन्होंने अपने तकिये की नीचे रखे 10 रूपए निकाल कर हमे दिए| काशी दादा काम वाम तो कुछ करते थे नहीं थे और जितनी शिकायत उन्हें अपने बेटे से थी लगता तो नहीं की उसने पैसे दिए होंगे| हमे अजीब लगा की चाहे 10 रूपए ही सही लेकिन बुढ्ढे के पास पैसे आये कहा से? लेकिन सवाल ये नहीं था की उनके पास पैसे कहा से आये सवाल ये था की अब हम उन्हें कैसे समझाए की अब इतने पैसे में जलेबी नहीं मिलती| उन्हें समझाने की जगह हमने उनसे कहा "क्या बात कर रहे दादा आपसे भला जलेबी के पैसे लेंगे अरे बचपन में आपने इतना खिलाया है अब हम खिला देंगे जलेबी ही तो है कोई सोना चाँदी नहीं"| इतना सुनते ही काशी दादा ने आशीर्वादो के बरसात शुरू करदी| फिर हमारे माता पिता का गुणगान किया वाह कैसा सपुत पैदा किया है| लेकिन हमारे माता पिता को हम कभी सपुत लगे नहीं| फिर अपने कपूत को गालिया दी|  हम भी चल दिए बाज़ार की ओर|

रस्ते से जाते हुए शंकर को बुला कर काशी दादा ने पूछा "तुने ओमी को देखा क्या "| शंकर ने बताया की कुछ देर पहले दिखे थे शहर की तरफ जारहे थे शायद| ये सुन कर काशी दादा को यकीन आगया की ओमी गया तो जलेबी लेने ही है| बुढ्ढा मन एक बात से मान जाये ये तो मुश्किल है| उन्होंने छोटू से कहा की ओमी अभी तक आया नहीं| छोटू शायद बात सुनी ही नहीं या सुन कर अनसुनी करदी| वो तो अपने खेल में मस्त था| ये देख कर दादा और चिढ गए और बडबडाने लगे| "बिलकुल अपने बाप पर गया है| कोई कुछ पूछ रहा है ये नहीं की उसे कुछ बता दे|" अब दादा को कौन समझाए की छोटू इतना बड़ा नहीं हुआ है की उनकी बातो का जवाब दे| शायद दादा को ये बात मालूम थी लेकिन उन्हें तो बस बहाना चहिये बडबडाने का| उनका बडबडाना जारी रहा "हमे लगता था की पुरे गाव में कोई अगर अच्छा लड़का है तो ओमी है| लेकिन लगता है ओमी भी बाकीयो की तरह ही है| शायद बाकियो से बड़ कर| और होगा भी क्यों नहीं पढ़ा लिखा है अब बाकीयो से तो ज्यादा चालक होगा ही| गया है जलेबी लेने या पता भी नहीं गया भी या नहीं| हमसे झुट तो नहीं बोलेगा लेकिन अगर गया है तो आता क्यों नहीं "| बुडापा इन्सान के सब्र को बहुत काम कर देता है| काशी दादा से भी सब्र नहीं होरहा था| तभी छोटू ने उन्हें बताया ओमी काका आगये|

जब काशी दादा ने जलेबी की पुडिया खोली तब हमने देखा 1 पेपर जलेबी के रस से भीग गया था| आज हमे समझ में आया की जलेबी वाले क्यों जलेबी को 2 पेपरों में क्यों बांध कर देते है| उनकी आँखों में बच्चो जैसा लालच और उतावलापन था| अपनी कापती उंगलियों से जब उन्होंने जलेबी उठाई तो लगा जैसे उनके बरसो से अधूरी इच्छा किसी ने पुरी करदी है| अब तो दादा पुरी जलेबी युही साफ़ कर देंगे| लेकिन हमारी सोच के विपरीत उन्होंने वो जलेबी छोटू को बुला कर दी, और कहने लगे येले जलेबी खा और ये तेरी चोकलेट से भी मीठी है| तभी काशी दादा के बेटे किशोर भैया भी आगये| किशोर बेटा आ जलेबी खाले ये सुनते ही हमे अचरज हुआ की जिस बेटे को कितनी गालिया दी अब उसे ही जलेबी खिला रहे है| एक हम है जिसने जलेबी लाकर दी उसकी कोई कीमत ही नहीं| शायद बाप का मन ऐसा ही होता है जो बस बच्चो को गाली तो देता है लेकिन उनसे अपना मोह नहीं छोड़ पता| अब हमारी पारी आयी जब किशोर भैया के सामने उन्होंने हमारी जी भर के तारीफ की और हमे भी जलेबी दी| रस्ते से जाते हुए बबलू को भी बुला लिया| हमे लगा जैसे पुरे गाव को न्योता देंगे आज| हमे समझ में आया काशी दादा की ख़ुशी जलेबी खाने से कम और बाटने से ज्यादा थी| वो फिरसे अपने जवानी के दिनों में पहुच गए थे जब उनके बाज़ार से आते ही आसपास के सारे बच्चे जमा होजाते और काशी दादा उन सबको जलेबी खिलाते|  अब काशी दादा ने खुद जलेबी खायी उनकी आँखों की चमक से उनके जीभ पर घुलती जलेबी का जैसे मानो सीधा प्रसारण हो रहा था| उन्हें जलेबी बहुत अच्छी लगी इसका सबूत तो उनके चेहरे की मुस्कान थी| जब  हमने काशी दादा से कहा की अब हम जाते है| दादा हमे एक और जलेबी दी और बहुत सारा आशीर्वाद दिया, हमारे माता पिता की गुणगान किया वाह कैसा सपुत पैदा किया है| अपने बेटे को लताड़ा की उनके रहते गाव के दुसरे लड़के उन्हें जलेबी लाकर खिला रहे है| हमने जब किशोर भैया को देखा तो उनकी आखों में एक ख़ुशी थी अपने पिता को जलेबी खाते देखने की| फिर वहा से चल दिए अपने माता पिता को बताने की उन्होंने कैसा सपुत पैदा किया है| 

हम घर आकर बैठे ही थे की किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी  "अरे भैया काशी दादा चल बसे "

10 comments:

  1. बगुत ही बढ़िया लिखा है ......काशी दादा के इस चरित्र ने दिल को छु लिया

    इसे भी पढ़े :-
    (आप क्या चाहते है - गोल्ड मेडल या ज्ञान ? )
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html

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  2. Wow...this is wat we can call a tribute to Munshee Prem Chand Ji...Thanks for sharing this Dost..very well written...Omee bhaiya ki Jai:-)

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  3. काशी दादा से इतनी ख़ुशी और मिठास सही नहीं गयी शायद पर जो भी हो मेरा मन तो प्रस्सन हो गया कहानी पढके....बहुत बढ़िया ओमी भैया

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  4. इस कहानी ने दिल को छूते हुए जीवन की सच्चाई बयां की...बहुत बढ़िया ओमी भैया!!

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  5. धन्यवाद दोस्तों

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  6. Bravo Dost... I felt this is the best of your story i read till now..It has touch of Munshi Premchand like Budhi kaki in our era..Keep it up.

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  7. लाजवाब कहानी है ओमी भैया!! ढेर सारी शुभकामनाएं!!

    इसी प्रकार लिखते रहे, आप ब्लॉग्गिंग की दुनिया मे काफी आगे जायेंगे! पूत के पाँव पालने मे ही दिख जाते हैं!



    -http://www.himanshushekhar.com

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  8. nice story omi.. lekin end bada hi dukh bhara tha..

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  9. ऊम्दा लिखी है| बहुत अच्छे :)

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  10. are mind blowing bhai...
    dil khush kar diya....

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