Saturday, September 10, 2011

वादो का हिसाब किताब



पुराने कपड़ो में आज बड़के भैय्या को वो पुरानी शर्ट नज़र आयी जो कभी ओमी ने खरीदवायी थी | जब बड़के भैय्या कॉलेज में थे तब एक बार बड़े जोश से यह सिद्ध कर रहे थे कि छोटे शहरो में अच्छे कपडे नहीं मिलते और हर दुकान पर जाकर उनका मुयायना कर रहे थे, तब यह शर्ट उनको पसंद आगयी | अब अगर खरीदी करने निकले होते तो साथ में पैसे भी होते | अब जिस ओमी से शर्त लगायी थी उससे शर्त तो हारनी ही थी लेकिन यह शर्ट भी खरीदनी थी | खैर ओमी के पास पैसे थे उसने वो शर्ट खरीदवा दी | उस वक़्त बड़के भैय्या खुश तो बहुत हुए और ओमी से न जाने कितने बड़े बड़े वादे किये जैसे नौकरी लगने के बाद वो उसके लिए शहर से विदेशी जींस लेकर आयेंगे | 

आज नौकरी लगे तीन साल हो गये थे, बड़के भैय्या की सैलरी दो बार बढ़ चुकी हैं, और अमूमन उनके हर कपडे यहाँ तक कि चड्डी बनियान भी विदेशी कंपनी के है | लेकिन ओमी की विदेशी जींस अभी भी एक वादा है | एक ऐसा वादा जिसे ओमी और बड़के भैय्या दोनों भूल चुके थे |

इन्सान अक्सर अपनी जीवन में वादे वाले वादे करता हैं, जैसे बड़ा होने पर माँ को घुमाने का वादा, पिताजी को नयी घडी लेने का वादा, छोटो को बड़े बड़े तोहफों का वादा | लेकिन ऐसे वादे सिर्फ वादे ही रह जाते हैं, क्यूंकि जब इन्सान इस लायक होता है कि इन वादों को पूरा करे उसके पास वक़्त कहाँ होता है | अब बड़के को ही लेलो, नौकरी शुरू होने के बाद ओमी से मिला भी नहीं था | लेकिन इस शर्ट ने उसे कुछ याद दिला दिया था | उसने कुछ सोचा और थोड़ी देर बाद झट से अपने काम का ब्यौरा देखा और एक महीने बाद की टिकट करवा ली, ओमी के गॉव जाने की |

"फूल गए हो भैय्या, अब तो आपके गाल भी निकल आये हैं, लगता है खूब मौज हो रही है बैंगलोर में " बड़के को देखते ही ओमी ने कहा | फिर दो भाइयो के बीच होने वाला हंसी मजाक, इधर उधर की बाते, लेकिन ओमी को पता था कि बड़के भैय्या पक्का अपने किसी काम से ही आये होंगे, वरना कौन आता है गॉव अपने नाते रिश्तेदारों से मिलने |

चाय नाश्ते के बाद ओमी से रहा नहीं गया उसने पूछ ही लिया कि सच सच बताओ कि क्यों आये हो ? बड़के भैया दो मिनट रुको कह कर अन्दर गए और अपने सूटकेस से एक पालीथीन लेकर आये और ओमी को थमा दी | जब ओमी ने पालीथीन खोली तो उसमे एक जींस थी, देख कर बड़ी महंगी लग रही थी | "तुम्हे अब तक याद है ?" ये सवाल था या अपनी खुश का इज़हार या फिर स्नेह ये तो किसी को नहीं पता लेकिन ओमी खुश बहुत हुआ | उन दोनों के रिश्तो में बड़े होने के साथ जो संजीदापन आगया था अब मिट गया था दोनों ही बचपन वाले रिश्ते में चले गये | और एक बाद एक न जाने कितनी यादे अपने आप बाहर आने लगी ऐसा लग रहा था जैसे दोनों किसी टाइम मशीन में बैठ कर अपने भूतकाल में घूम रहे हो |
बड़के ने ओमी से कहा "एक दिन अचानक उस शर्ट को देख कर वो दिन याद आगया जब मैंने तुमसे ये वादा किया था, पहले सोचा कि खरीद कर तुम्हे भेजवा दू लेकिन तब ख्याल आया कि इससे मैं शर्ट के बदले जींस तो दे दूंगा लेकिन तुमने मुझे जो ख़ुशी दी थी उस ख़ुशी के बदले ख़ुशी नहीं दे पाउँगा, जहाँ वादा निभाने में तीन साल लगाये वही एक और महिना सही लेकिन जींस तो खुद आकर दूंगा मैंने निश्चय कर लिया था "

इन्सान अक्सर पैसे का हिसाब तो रखता है लेकिन वादों, अहसासों और खुशियों का नहीं | अगर हम यह हिसाब भी रखना शुरू कर दे तो पाएंगे की हम सभी कितने कर्जो में हैं | छोटी छोटी मदद जिन्होंने ज़िन्दगी आसान बना दी थी, या नामसझ गलतियाँ जिन्होंने ज़िन्दगी के बड़े बड़े सबक सिखाये और न जाने कितनी ऐसी बाते, जिन्हें हम अपने भविष्य का वादा बना कर भूल जाते है | उस वक़्त तो ऐसा लगता है कि बस ये हो जाने दो फिर देखना वो कर दूंगा ये कर दूंगा | लेकिन करता कोई नहीं क्यूंकि सभी मशरूफ हो जाते हैं ज़िन्दगी में |  

"अरे बहुत खूब भैय्या अब तो सबके हिसाब चूका रहे हो, तो मास्टर जी का हिसाब भी चूका दो उस वक़्त तो क्या शान से कहा था तुमने कि बड़ा होने के बाद सब कर दोगे" ओमी ने यह बात हँसते हुए ही कही थी लेकिन बड़के भैय्या को जैसे एक और क़र्ज़ की वसूली का नोटिस मिल गया था | उसे याद आया कि कैसे उसने ये नासमझी की थी |

ओमी और बड़के भैय्या दोनों उस वक़्त स्कुल में थे, और उन्हें आम लेने खेत जाना था | उन्होंने पैदल जाने के जगह सायकल से जाने की सोची लेकिन सायकल मिलती कहाँ से? तभी उन्होंने ध्यान दिया की ओमी के पिताजी से मिलने पास के गॉव के मास्टरजी आये है | ये बेचारे भी अभी अभी ही नौकरी में लगे थे, और पास के गॉव में ही रहते थे, अब उन्होंने सोचा कि आये है तो गॉव के प्रमुख लोगो से मिल लेना चाहिए | घर आने पर उन्हें पता  चला कि ओमी के पिताजी घर पर नहीं है तभी मौके का फायदा उठा कर बड़के भैया ने मास्टरजी से कहा "मौसाजी खेत गए है हम उन्हें बुला के ला लेते है, लेकिन अगर आप अपनी सायकल दे दोगे तो हम जल्दी उन्हें बुला लेंगे" सायकल देने की इच्छा तो नहीं थी, लेकिन बड़के के दो-तीन बार कहने पर उन्होंने इस सलाह के साथ कि देख के चलाना नयी है, सायकल दे दी |

जल्द ही ओमी के पिताजी आगये | उन्हें देख कर मास्टरजी बोले बड़े जल्दी आगये खेतो से ! ओमी के पिताजी को हंसी आ गयी अरे कहाँ के खेत भाई यही पड़ोस में बैठे थे, पता होता तुम आये हो तो वही बुलवा लेते | इसके बाद मास्टरजी ने उन्हें पूरी बात बतायी | ओमी के झट से एक नौकर को उन दोनों को देखने खेतो की और रवाना कर दिया | मास्टरजी को शरारत तो समझ में आ चुकी थी और अपनी नयी सायकल की चिंता उन्हें सता रही थी |    

अभी एक महीने भी नहीं हुए थे बेचारे ने बड़े अरमान से ली थी, अपनी पगार में से मुश्किल से पैसे बचा कर  | ओमी को आता देख मास्टरजी के जान में जान आयी लेकिन यह बस कुछ पल के लिए थी | "क्यों रे ओमी मास्टरजी की सायकल कहाँ है ?" ओमी को पता था यह सवाल जल्द ही उससे पूछा जायेगा, उसने ईमानदारी से बता दिया कि सायकल नहीं मिल रही | उसने और बड़के ने सायकल खेतो के बाहर ही खड़ी की थी लेकिन जब वो लोग आम लेकर वापस आये तो वो वहाँ नहीं थी | ओमी पूरी बात ख़त्म करता उससे पहले ही मास्टरजी ने पूछा तुम्हारा वो भाई कहाँ है? ओमी ने चुप कर खड़ा रहा | इस बार ओमी के पिताजी ने उस डरा कर पूछा तो ओमी ने बताया कि भैय्या खेतो में ही है उन्हें डर है कि वापस घर आये तो मार पड़ेगी | अब एक तरफ मास्टरजी को सायकल का दुःख था वही दूसरी तरफ ओमी के पिताजी को बच्चे की चिंता | 

हालाँकि मास्टरजी को जब ओमी के पिता जी ने कहा कि वो सायकल लिवा देंगे तब तो लोकलाज के कारण उन्होंने मना कर दिया लेकिन मन में तो यही था कि मुझे मेरी सायकल दिलवा दो बस |  लेकिन उन्होंने कहाँ "अब जो हुआ सो हुआ बच्चे नादान है, चलिए मैं चलता हूँ अब तो पैदल जाना पड़ेगा " खैर ओमी के पिताजी ने उनके जाने का इन्तेजाम करवा दिया | लेकिन इतने अरमानो से ली हुई सायकल खोने का दुःख उनके चेहरे में न जाने कितनो महीनो तक रहा होगा | भेजे गये नौकर के साथ जब वो वापस आया तब मास्टरजी जा चुके थे, लेकिन फिर भी उसे और ओमी को बहुत डांट डपट पड़ी | और वो दोनों मन ही मन उस चोर को कोस रहे थे जिसने यह काम किया था | रात में सोते समय बड़के ने ओमी से कहाँ था देखना बड़ा होने के बाद सबसे पहले इस मास्टर को सायकल खरीद कर दूंगा | अब सायकल खो गयी तो इसमें हमारी क्या गलती, हमने तो पास में भी खड़ी की थी, अब हमे क्या पता था कि कोई चोर वहाँ तक लगाये बैठा है |

लेकिन जैसे जैसे वक्त बिता वैसे वैसे सारी बाते भी वक्त के साथ खो गयी | अपनी जिंदगी में मशरूफ बडके भैय्या के पास अब अपने भाई ओमी के लिए वक्त नहीं था तो अब ऐसे बातों को कहाँ याद रखता लेकिन अब सब साफ़ साफ़ याद आ गया था |  ओमी से उसे पता चला कि मास्टरजी अभी भी पड़ोस वाले गॉव में ही है उसने मास्टरजी से भी मिलने की बात ओमी से कहीं | "अब क्या उन्हें सायकल खरीद कर दोगे?" ओमी ने मजाक उड़ाते हुए कहा | इस पर बडके भैय्या कहा नहीं बस उनसे बात करनी है, अब उन्हें सायकल की जरुरत भी कहाँ होगी?

अगले दिन मास्टरजी के घर, ओमी और बड़के भैय्या उनसे मिलने गए | बड़के भैय्या ने नमस्ते किया और बोले "आपने शायद मुझे पहचाना नहीं मैं वहीँ शैतान बच्चा हूँ जिसने आपसे झूट बोल कर आपकी सायकल ली थी और खो दी थी, मैं आज आपसे उस बात के लिए माफ़ी मांगने आया हूँ .........."  

4 comments:

  1. fundoo story boss... i believe everybody has a story of this kind in his/her life.. made some serious promise and not able to deliever it because "they are busy these days!!!!"

    ReplyDelete
  2. bahoot achhe..got completely engrossed in story..

    ReplyDelete
  3. nice one OP but i felt its not finished yet...किसी अधूरे वादे के जैसी......

    ReplyDelete

Related Posts with Thumbnails